नई दिल्ली (सं.सू.)। 80 में से 35 नंबर तो पास, 80 में साठ नंबर तो फेल। बिहार में एक बड़ा भर्ती घोटाला हुआ है। आप इसे बिहार का व्यापम घोटाला भी कह सकते हैं। बिहार के भागलपुर कृषि विश्वविद्यालय में जूनियर कृषि वैज्ञानिकों और असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी सामने आई है।
ये कहानी है बिहार के भागलपुर में महज पांच साल पहले शुरू हुए बिहार कृषि विश्वविद्यालय के भर्ती घोटाले की। विश्वविद्यालय नया था इसलिए यहां बड़े पैमाने पर भर्तियां होनी थी। साल 2012 में इस विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर और जूनियर वैज्ञानिकों के 281 पदों के लिए विज्ञापन निकाला गया। करीब 2500 लोगों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया और 166 लोगों की नियुक्ति भी हो गई लेकिन इसी भर्ती में घोटाला हुआ है।
उन 166 नियुक्तियों के लिए तैयार की गई मेरिट लिस्ट को देखकर कोई भी बता सकता है कि भर्ती साफ सुथरे तरीके से नहीं की गई। ये मेरिट लिस्ट तीन साल पहले दाखिल की आरटीआई यानी सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई थी लेकिन बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने इसे देने में तीन साल लगा दिए।
कुल सौ नंबर के आधार पर चयन होना था जिसमें से 80 नंबर शैक्षणिक योग्यता यानी स्कूल, कॉलेज, डिग्री, रिसर्च पेपर और पुरस्कारों के आधार पर दिए जाने थे। इसके बाद 10 नंबर इंटरव्यू के लिए और 10 नंबर इंटरव्यू के दौरान दिए गए प्रेजेंटेशन के लिए तय किए गए थे यानी 20 नंबर चयन समिति के हाथ में थे।
इंटरव्यू में 10 में से 10 नंबर और प्रेजेंटेशन में भी 10 में से 10 नंबर – इसका सिर्फ एक मतलब था कि इंटरव्यू लेने वाली 5 सदस्यों की टीम में से हर एक ने पूरे 20 नंबर दे दिए और शैक्षणिक योग्यता में बाकी अभ्यर्थियों से कमजोर होने के बावजूद इन्हें नौकरी मिल गई।
दूसरी तरफ इस मेरिट लिस्ट के मुताबिक कई अभ्यर्थियों को शैक्षणिक योग्यता के कॉलम में यानी 80 में से 55 से 62 के बीच नंबर मिले थे लेकिन उन्हें इंटरव्यू और प्रेजेंटेशन में 0.1 नंबर देकर रेस से ही बाहर कर दिया गया।
असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में साफ तौर पर नजर आ रही है एक बड़ी धांधली। इस खेल में नौकरी ना पाने वाले आरोप लगा रहें कि जानबूझकर कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने की कोशिश की गई।
यही वजह है कि ऐसे कई अभ्यर्थियों को नौकरी नहीं मिल पाई। नौकरी ना पाने वालों में शामिल हैं डॉ पुष्पेंद्र दत्त। 166 लोगों की मेरिट लिस्ट में सबसे ज्यादा शैक्षणिक योग्यता के नंबर इन्हीं को मिले हैं यानी 62.5 लेकिन उनका चयन नहीं हुआ क्योंकि उन्हें इंटरव्यू में 0.1 नंबर मिला यही नहीं प्रेजेंटेशन में भी 0.1 नंबर ही मिला और वो नौकरी नहीं पा सके।
नौकरी ना पाने वाले छात्रों के मुताबिक किसी भी इंटरव्यू में ना तो 10 में 10 नंबर मिल सकते हैं और ना ही .1 नंबर।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये मुमकिन है कि इंटरव्यू में किसी को 10 में 10 नंबर दे दिए जाएं?
यही नहीं अब ये बात भी सामने आ रही है कि इंटरव्यू में प्रेजेंटेशन के लिए तय किए 10 नंबर तो बिना प्रेजेंटेशन लिए ही दे दिए गए।
आरोप है कि ये मेरिट लिस्ट इंटरव्यू के बाद तैयार की गई और इस पूरे घोटाले में बिहार कृषि विश्वविद्यालय के पहले कुलपति मेवालाल चौधरी की बड़ी भूमिका है।
जानकारी के मुताबिक भागलपुर के बिहार विश्वविद्यालय के इस भर्ती घोटाले को लेकर राज्यपाल तक भी शिकायत पहुंच चुकी है और उनके कहने पर विश्वविद्यालय ने एक जांच समिति भी बना दी है। विश्वविद्यालय के मौजूदा कुलपति इस पर कुछ नहीं बोलना चाहते।
वाइस चांसलर अरुण कुमार तो यहां तक कहते हैं कि चयन समिति का फैसला आखिरी होता है जिसे अदालत में भी चुनौती नहीं दी जा सकती।
यहाँ हम आपको बता दें कि घोटाले के आरोपी मेवालाल चौधरी अब बिहार में जेडीयू के विधायक हैं।
मेवालाल चौधरी साल 2010 में बिहार कृषि विश्वविद्यालय के पहले वाइस चांसलर बनाए गए थे। मेवालाल चौधरी के कार्यकाल में ही असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में गड़बड़ी की आशंका होने के बाद नौकरी ना पाने वाले अभ्यर्थियों ने सूचना के अधिकार के तहत इस मेरिट लिस्ट की मांग की थी। लेकिन आरोप है कि मेवालाल चौधरी ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की वजह से मेरिट लिस्ट जारी नहीं की ताकि उन्हें 2015 में जेडीयू से टिकट मिलने में मुश्किल ना हो।
मेवालाल चौधरी वाइस चांसलर बनने से पहले भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में सीनियर साइंटिस्ट और भारत सरकार के उद्यान आयुक्त भी रह चुके हैं। मेवालाल चौधरी की पत्नी नीता चौधरी भी पिछली जेडीयू सरकार में विधायक रह चुकी हैं।
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