Friday, January 15, 2016

बिहार में राष्ट्रपति शासन को लेकर हंसराज का सनसनीखेज खुलासा


नई दिल्ली (सं.सू.)। पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। भारद्वाज ने कहा है कि 2005 में बिहार में राष्ट्रपति शासन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सरकार के हक में लाने का उनपर बड़ा दबाव था। भारद्वाज पर यह दबाव मनमोहन सरकार की तरफ से था। बता दें कि 2005 में बीजेपी-जेडीयू को सत्ता में आने से रोकने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था।

टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार में छपी खबर के मुताबिक, भारद्वाज ने कहा कि उन्होंने इस संबंध में तब के चीफ जस्टिस वाई के सभरवाल से मुलाकात भी की थी। सभरवाल इस केस को देख रही कंस्टिट्यूशन बेंच को हेड कर रहे थे। भारद्वाज की मुलाकात के बावजूद फैसला सरकार के पक्ष में नहीं आया था। 5 सदस्यीय बेंच ने, 3-2 के बहुमत से राष्ट्रपति शासन के फैसले को धारा 356 का दुरुपयोग करार देते हुए बिहार के तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह की रिपोर्ट को राजनीति से प्रेरित बताया था।

पूर्व कानून मंत्री ने कहा कि जस्टिस सभरवाल मेरे पारिवारिक मित्र थे लेकिन वह एक कड़े जज भी थे। एचआर भारद्वाज ने कहा कि जब हम कॉफी पर मिले तो मैं उनसे इस बारे में कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका था। भारद्वाज ने यह बातें दिवंगत जस्टिस सभरवाल के नाम पर नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली में बने मूट कोर्ट हॉल के उद्घाटन पर कहीं।

वित्त मंत्री अरुण जेटली भी इस मौके पर मौजूद थे। जेटली ने नीतीश कुमार की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार को सत्ता में आने से रोकने की कोशिश पर कांग्रेस को निशाने पर लिया।

राष्ट्रपति शासन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिलने के बाद अपनी स्थिति के बारे में बताते हुए सभरवाल ने कहा, ‘मैं उस वक्त गहरी मुसीबत में था। केंद्रीय कैबिनेट में कई तरह के लोग थे और मुझसे कहा गया कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला राष्ट्रपति शासन के विरोध में आया तो मैं अपना पद खो सकता हूं।’

भारद्वाज के इस बयान ने इशारा दिया है कि जेडीयू और बीजेपी के बहुमत से दूर रह जाने के बाद उस वक्त यूपीए में प्रभावशाली सहयोगी रहे लालू प्रसाद यादव के दबाव के बाद ही बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।

केन्द्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगाए जाने वाले निर्णय पर आदेश के लिए राष्ट्रपति एपीजे अब्दल कलाम के पास फैक्स भेजा था। कलाम उन दिनों रूस के दौरे पर थे और उन्होंने वहीं से उसको मंजूरी दे दी थी जिसके लिए उनकी खासी आलोचना हुई।

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