Monday, January 25, 2016

बोस ने अखबार में पढ़ी थी अपनी ही मौत की खबर-कर्नल


आजमगढ़ (सं.सू.)। नेता जी सुभाष चंद्र बोस की विमान हादसे में मौत के दावे लाख किए जाएँ लेकिन एक शख्स ऐसा भी है जो इसे सिरे से खारिज करता है। यह कोई और नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के वाहन चालक कर्नल निजामुद्दीन हैं। जिनका दावा है कि विमान हादसा 18 अगस्त 1945 को हुआ था, लेकिन 20 अगस्त 1947 को उनकी नेता जी से अंतिम मुलाकात वर्मा के सितांग में नदी के किनारे हुई थी। वहां से जाते समय नेताजी ने जीवन रहने पर फिर मिलने का वादा किया था, साथ ही यह भी कहा था कि सैनिको को भारत भेज देना। यहीं नहीं कर्नल की माने तो नेताजी अपनी मौत की खबर खुद अखबार में पढ़े थे और उन्हें इस बात की भनक भी लग गई थी कि कांग्रेस और अंग्रेजों के बीच उन्हें पकड़वाने का समझौता हो चुका है। यही कारण था कि नेताजी 20 अगस्त को नदी के रास्ते कहीं चले गये और फिर नहीं लौटे न ही उनसे बात हुई।
तेरह साल की उम्र में मुबारकपुर थाना क्षेत्र के ढकवां गांव से भागकर सिंगापुर गये निजामुद्दीन के बचपन का नाम शैफुद्दीन था। सिंगापुर में उनके दादा इस्लाम अली की कैंटिन थी। उसी पर वे काम करते थे कि उनके दादा ने उन्हें ब्रिटिश आर्मी में भर्ती करा दिया। अंग्रेजों का यह कहना कि फौज में इंडियन मर जाय पर खच्चर नहीं मरना चाहिए इन्हे आहत करता था। अभी उन्हें फौज में काम करते हुए कुछ महीने ही हुए थे कि आईएनए के लोग पर्चा गिराते हुए मिले और आर्मी छोड़ वे आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए, जहां इन्हें निजामुद्दीन का नाम मिला, साथ ही फौज की लारी चलाने की जिम्मेदारी। 1943 में जाहबालू द्वीप सिंगापुर के सुल्तान ने नेताजी को 12 सिलेंडर की लिंकिंग जाफर नाम की कार भेंट की। इसके बाद नेताजी ने वह कार चलाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी।

इनकी मानें तो कार को शिप से वर्मा लाया गया था। आजाद हिंद फौज का बैंक, करेंसी रेडियो स्टेशन वर्मा में था। रंगून के रायल लीग स्ट्रीट पर सेना का हेड आफिस डा. बामू के मकान में था। लंबे समय तक ये लोग वर्मा के टाइची में सुरंग बनाकर रहे। कर्नल के मुताबिक एक बार नेताजी को बचाते हुए उन्हें तीन गोली पीठ में लगी थी, उस गोली को कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने निकाला था। उसी समय नेताजी ने कहा था कि निजामू तूमने मुझे दूसरा जन्म दिया है और उसी दिन उन्होंने इन्हें कर्नल की उपाधि दी। नेताजी निजामुद्दीन के निशानेबाजी से भी बहुत प्रभावित रहते। कर्नल यहां तक कहते हैं कि वे चालक के साथ ही उनके सुरक्षा गार्ड भी थे, लेकिन उन्होंने कभी नेताजी को खिलखिलाकर हंसते नहीं देखा। बस हमेशा मुस्कुराते रहते थे। निजामुद्दीन बताते हैं कि 18 अगस्त 1945 को जब विमान हादसे के बाद नेता जी की मौत की खबर फैली तो सभी निराश थे, लेकिन नेताजी ने 20 अगस्त 1945 को वायरलेस पर फोन कर सितांग में एक छोटी नदी के पनघट पर बुलाया था। वहां जब नेता जी आए तो उनके साथ एक मद्रासी और कुछ जापानी लोग भी थे। उन्होंने कहा कि अब यहां रहना ठीक नहीं है। मैंने अपनी मौत की खबर अखबार में पढ़ी है और यह भी पता चला है कि कांग्रेस और अंग्रेजों में मुझे पकड़वाने के लिए समझौता हो चुका है। मैं वोट से चला जाउंगा। तुम लोग अपने सारे प्रूफ जला देना और सैनिकों को भारत भेज देना। इसके बाद नेता जी सिंताग से वोट से चले गए। वोट पर बैठने के बाद पूछने पर भी, उन्होंने नहीं बताया कि कहां जा रहे हैं। इतना जरूर कहा कि जीवन रहा तो फिर मिलेंगे। इसके बाद नेता जी का वायरलेस पर फोन आया कि वे पहुंच गए हैं। कहां नहीं बताए। इसके बाद नेताजी की कोई खबर उन्हें नहीं मिली।

No comments:

Post a Comment