नई दिल्ली (सं.सू.)। जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी के प्रोफेसर और कवि मकरंद परांजपे ने सोमवार को छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को फटकारते हुए कहा कि क्या भाषण देने से पहले उन्होंने तथ्यों की जांच की। उन्होंने कहा, ‘कन्हैया ने अपने भाषण में कहा कि गोलवलकर मुसोलिनी से मिले थे। क्या आपने तथ्यों की जांच की। मुसोलिनी से मुंजे मिले थे।’ परांजपे एडमिल ब्लॉक में 15वें एक कार्यक्रम में बोल रहे थे।
जेएनयू छात्रों को संबोधित करते हुए परांजपे ने कहा,’मैं यह नहीं कह रहा कि वे फासीवाद से प्रेरित नहीं थे। वे फासीवाद से प्रभावित थे। उन्हें लगता था कि अधिनायकवाद सही तरीका है। हमें इस बात पर सहमत होना होगा कि क्या सही है और क्या गलत। फासीवाद और स्टालिनवाद दोनों लोकतंत्र के खिलाफ है। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं ऐसे देश से आता हूं जहां तथाकथित न्यायिक हत्या बड़ा मुद्दा बन जाती है।’
उन्होंने छात्रों से पूछा कि क्या वे जानते हैं 1920-1950 के बीच स्टालिन के सोवियत संघ में कितनी न्यायिक हत्याएं हुई। उन्होंने इसका जवाब देते हुए बताया, ‘77999553 लोगों की इस तरह हत्या हुई। वहीं 34 हजार लोगों को ही आपराधिक मामलों में सजा दी गई।’ परांजपे के भाषण के दौरान पहले तो कन्हैया कुमार ने नारे लगाए। बाद में कुछ छात्रों ने परांजपे की खिल्ली भी उड़ाई। वहीं कन्हैया ने भाषण के दौरान परांजपे से सवाल भी किए। कार्यक्रम के दौरान अन्य वक्ताओं ने वामपंथी विचारधारा के समर्थन में बातें कहीं।
‘अनसिविल वार्स: टैगोर, गांधी, जेएनयू एंड व्हाटस लेफ्ट ऑफ द नेशन’ के मुद्दे पर परांजपे ने कहा, ‘जब हम खुद को लोकतांत्रिक मानते हैं तो यह सोचने की भी जरूरत है कि क्या यह वाकई सच है। क्या यह संभव नहीं है यह वामपंथी प्रमुखता वाले लोगों की जगह बन गई। जहां यदि आप असहमत होते हैं तो आपको चुप कर दिया जाता है या आपका बहिष्कार कर दिया जाता है।’ परांजपे के इस बयान के दौरान जेएनयू छात्र संघ उपाध्यक्ष शहला राशिद को छात्रों को चुप कराने के लिए खड़ा होना पड़ा।
परांजपे ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वामपंथी पार्टियों की बर्ताव पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अंग्रेजों को लिखा कि वे प्रदर्शन नहीं करेंगे। जब आप लोग लडेंगे तो हम आपका साथ देंगे। जब हम यह कहते हैं कि हमने भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी तो मैं सबूत देखना चाहता हूं।’
जेएनयू छात्रों को संबोधित करते हुए परांजपे ने कहा,’मैं यह नहीं कह रहा कि वे फासीवाद से प्रेरित नहीं थे। वे फासीवाद से प्रभावित थे। उन्हें लगता था कि अधिनायकवाद सही तरीका है। हमें इस बात पर सहमत होना होगा कि क्या सही है और क्या गलत। फासीवाद और स्टालिनवाद दोनों लोकतंत्र के खिलाफ है। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं ऐसे देश से आता हूं जहां तथाकथित न्यायिक हत्या बड़ा मुद्दा बन जाती है।’
उन्होंने छात्रों से पूछा कि क्या वे जानते हैं 1920-1950 के बीच स्टालिन के सोवियत संघ में कितनी न्यायिक हत्याएं हुई। उन्होंने इसका जवाब देते हुए बताया, ‘77999553 लोगों की इस तरह हत्या हुई। वहीं 34 हजार लोगों को ही आपराधिक मामलों में सजा दी गई।’ परांजपे के भाषण के दौरान पहले तो कन्हैया कुमार ने नारे लगाए। बाद में कुछ छात्रों ने परांजपे की खिल्ली भी उड़ाई। वहीं कन्हैया ने भाषण के दौरान परांजपे से सवाल भी किए। कार्यक्रम के दौरान अन्य वक्ताओं ने वामपंथी विचारधारा के समर्थन में बातें कहीं।
‘अनसिविल वार्स: टैगोर, गांधी, जेएनयू एंड व्हाटस लेफ्ट ऑफ द नेशन’ के मुद्दे पर परांजपे ने कहा, ‘जब हम खुद को लोकतांत्रिक मानते हैं तो यह सोचने की भी जरूरत है कि क्या यह वाकई सच है। क्या यह संभव नहीं है यह वामपंथी प्रमुखता वाले लोगों की जगह बन गई। जहां यदि आप असहमत होते हैं तो आपको चुप कर दिया जाता है या आपका बहिष्कार कर दिया जाता है।’ परांजपे के इस बयान के दौरान जेएनयू छात्र संघ उपाध्यक्ष शहला राशिद को छात्रों को चुप कराने के लिए खड़ा होना पड़ा।
परांजपे ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वामपंथी पार्टियों की बर्ताव पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अंग्रेजों को लिखा कि वे प्रदर्शन नहीं करेंगे। जब आप लोग लडेंगे तो हम आपका साथ देंगे। जब हम यह कहते हैं कि हमने भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी तो मैं सबूत देखना चाहता हूं।’
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