Saturday, May 14, 2016

हर वर्ष विचार कुंभ करे संत समाज-मोदी

उज्जैन (सं.सू.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना ने आज निनौरा-उज्जैन में अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ के समापन सत्र में सिंहस्थ महाकुंभ 2016 में आये सभी अखाड़ों के संतों, महंतों और संत समुदाय के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में 51 सूत्री सिंहस्थ 2016 सार्वभौमिक अमृत संदेश को समाज और विश्व को समर्पित किया। सार्वभौम संदेश में मूल्य आधारित जीवन, मानव-कल्याण के लिये धर्म, ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन, विज्ञान एवं आध्यात्म, महिला सशक्तिकरण, कृषि, स्वच्छता, कुटीर उद्योग जैसे विषयों पर देश और विश्वभर से आये विद्वानों के विचार-विमर्श के बाद बनाये 51 मार्गदर्शी बिन्दु हैं। श्री मोदी ने कहा कि सभी संत अपनी विचार परंपरा में हर वर्ष एक सप्ताह का विचार महाकुंभ आयोजित कर समाज को दिशा दें। उन्होंने कहा कि आज विश्व, ग्लोबल वार्मिंग और आतंकवाद दो बड़ी समस्याओं से जूझ रहा है। इन समस्याओं से निपटने के लिये जीवन मूल्यों को स्वीकार करने की जरुरत है। कुंभ के दौरान संत और समाजवेत्ता समाज की चिंता करते थे और भविष्य के लिये नई विधाओं का अन्वेषण करते थे। कुंभ के माध्यम से अगले बारह साल के लिये समाज की दिशा और कार्य-योजना तय होती थी। हर तीन साल के बाद इसकी समीक्षा होती थी। कुंभ एक अदभुत सामाजिक रचना थी पर धीरे-धीरे इस परम्परा के प्राण खो गये। उज्जैन के इस कुंभ से एक नया प्रयास प्रारंभ हुआ और सदियों पुरानी व्यवस्था का आधुनिकीकरण किया गया। श्री मोदी ने कहा कि हमें भारतीय मूल्यों और ज्ञान को वैज्ञानिक आधार पर दुनिया के सामने रखना होगा और उनके आधार पर समस्याओं का समाधान ढूँढना होगा। मानव-कल्याण के लिये हर कुंभ मेले में विचार-मंथन की परंपरा आगे बढ़ाते हुए समाज के लिये मार्गदर्शी अमृत बिन्दु निकाले जायें। उन्होंने कहा कि भारत आत्मा के अमरत्व से जुड़ी परम्परा को मानने वाला देश है। कुम्भ की महान परम्परा सामाजिक संदर्भों में विचार से जुड़ी सांस्कृतिक परम्परा है। यह विशाल भारत को अपने में समेटने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि कुंभ में बिना निमंत्रण के विशाल संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यह प्रबंधन की सबसे बड़ी घटना है। कुंभ मेले के प्रबंधन को दुनिया के सामने अध्ययन के लिये प्रस्तुत करना चाहिए। हमारे चुनाव भी दुनिया के लिये प्रबंधन का बहुत बड़ा उदाहरण है।

प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि समाज के लिये नि:स्वार्थ भाव से काम करने वाले संत, वैज्ञानिक, किसान, मजदूर और नागरिक एक दिशा में चलकर बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। यह अमृत बिन्दु भारत और वैश्विक जन-समूह को आने वाले समय में दिशा देंगे। भारतीय मूल चिंतन सबके कल्याण का है। हमारे यहाँ दूसरों के लिये त्याग को आनंद से जोड़ा है। पूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने देश से सप्ताह में एक दिन उपवास का आग्रह किया और जनता ने उसे करके दिखाया। ऐसा ही एक विषय मैंने जनता के सामने रखा कि रसोई गैस की सब्सिडी छोड़ दें और देश के एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने सब्सिडी छोड़ दी। इससे अगले तीन साल में पाँच करोड़ गरीब परिवारों को धुँए वाले चूल्हे से मुक्ति मिलेगी और जंगल बचेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी परंपरा में ज्ञान को अजर-अमर माना गया है। विश्व में जो भी श्रेष्ठ है उसे लेना और समाहित करना हमारी आदत है। हम ऐसे समाज के लोग हैं जहाँ विविधताएँ हैं। हमें आंतरिक विवादों के प्रबंधन में महारत हासिल है। भारत हठवादिता से नहीं बल्कि दर्शन से जुड़ा देश है। हमारा दर्शन जीवन के लिये जीने की प्रेरणा देता है। आज भारत के पारिवारिक जीवन मूल्यों को पूरा विश्व स्वीकार कर रहा है। हमारे सामने चुनौती है कि समय की कसौटी पर खरे उतरें। जीवन मूल्यों के प्रति समाज को जागरूक करें। प्रधानमंत्री उज्जैन में कुंभ के आयोजन से जुड़े सभी नागरिकों और सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को और संकट के समय श्रद्धालुओं की मदद के लिये उज्जैन के नागरिकों को धन्यवाद दिया। श्रीलंका के राष्ट्रपति श्री मैत्रीपाल सिरिसेना ने विचार कुंभ में आमंत्रित करने के लिये प्रधानमंत्री श्री मोदी और मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को धन्यवाद दिया। अनागरिक धम्मपाल की प्रतिमा के अनावरण का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि भारत और श्रीलंका के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं।

उन्होंने कहा कि धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध और उनसे जुड़े विषयों पर दोनों देशों के बीच गहरी समझ है। नदियों के संरक्षण का विशाल अभियान अमरकंटक से मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि कुंभ की विचार-मंथन की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए पिछले दो वर्ष से विश्व की ज्वलंत समस्याओं पर देश-विदेश के विद्वानों और संतों का विचार-मंथन चला। समस्याओं के संभावित समाधान निकाले गये और 51 बिन्दु के अमृत संदेश का उदघोष हुआ। उन्होंने कहा कि सिंहस्थ की घोषणा के पालन की शुरूआत मध्यप्रदेश से होगी। राज्य सरकार आनंद मंत्रालय का गठन करने जा रही है। इसके माध्यम से प्रसन्न रहने के आध्यात्मिक तरीकों पर विचार किया जायेगा। श्री चौहान ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या जलवायु परिवर्तन की है। इससे नदियाँ सूख रही हैं। इस दिशा में पहल करते हुए राज्य सरकार नर्मदा और क्षिप्रा नदियों को बचाने का काम शुरू करेगी। संतों की उपस्थिति में देवउठनी ग्यारस से अमरकंटक से नदियों के जन-जागरण का विशाल अभियान शुरू होगा। जन सहयोग से पेड़ लगाने की शुरुआत होगी। श्री चौहान ने कहा कि खेती की दिशा बदलते हुए सरकार ऋषि खेती को बढ़ावा देगी। सभी विकासखंड में आदर्श कृषि प्रक्षेत्र बनेंगे। प्रदेश को जैविक खेती का प्रदेश बनाया जायेगा। उन्होंने कहा कि स्वच्छता को सामाजिक आंदोलन बनाने का अभियान निरंतर जारी रहेगा। ऐसे लोगों को स्थानीय चुनाव में भाग लेने से अयोग्य ठहराया जायेगा, जिनके यहाँ शौचालय नहीं है। इसके लिये कानून बनाया जायेगा। जल-संरचनाओं को फिर से जीवित किया जायेगा। होगी नैतिक शिक्षा अनिवार्य मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं के पाठयक्रम में बदलाव करते हुए नैतिक शिक्षा को शामिल किया जायेगा। गीता, उपनिषद और अन्य धार्मिक ग्रंथों की नैतिक शिक्षाओं को शामिल किया जायेगा। विज्ञापनों में नारी के वस्तु के रूप में प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिये कानून बनाया जायेगा। उन्होंने कहा कि नारी की गरिमा एवं सम्मान समाज का कर्त्तव्य है। लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि सिंहस्थ घोषणा-पत्र को संयुक्त राष्ट्र संघ एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भेजा जायेगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि मूल्य आधारित जीवन, मानवता के कल्याण के लिये धर्म, विज्ञान और अध्यात्म, जलवायु परिवर्तन, महिला सशक्तिकरण, कुटीर उद्योग, संवहनीय कृषि और स्वच्छता जैसे विषयों पर देश और विदेश के जाने-माने विद्वानों, चिंतकों और प्रज्ञावान संतों ने बहुमूल्य विचार रखे, जिसके लिये मैं उनका ह्रदय से आभारी हूँ। आयोजन समिति के अध्यक्ष एवं राज्य सभा सदस्य अनिल माधव दवे ने समापन सत्र का संचालन किया। श्री दवे ने तीन दिन में हुए विचार-विमर्श की जानकारी देते हुए बताया कि इस विचार-मंथन में प्रमुख देशों का प्रतिनिधित्व रहा। कार्यक्रम में गोवा की राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा, केन्द्रीय इस्पात मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, केन्द्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गेहलोत, सदगुरू श्री जग्गी वासुदेव, जूना अखाड़ा महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, झारखंड के मुख्यमंत्री श्री रघुबर दास, श्रीलंका के विपक्ष के नेता श्री आर. सम्पंथान, बंगलादेश के सांसद श्री साघन चन्द्र मजूमदार, प्रदेश के संस्कृति राज्य मंत्री सुरेन्द्र पटवा, बड़ी संख्या में देश-विदेश से आये विषय-विशेषज्ञ, विचारक और संत समाज उपस्थित थे।

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