Monday, May 2, 2016

मसूद अजहर मामले पर काम आया भारत का दांव, चीन झुकने को मजबूर

नयी दिल्ली (एजेंसी)। चीन में शिंजियांग प्रांत के उइगर समुदाय के असंतुष्ट नेता डोल्कुन ईसा और दो अन्य असंतुष्ट नेताओं को पहले वीजा देने और बाद में रद्द कर देने से भले ही मोदी सरकार की विदेश नीति आलोचना का शिकार हो रही है लेकिन इस कूटनीतिक दांव से चीन को अहसास हो गया है कि मसूद अजहर के मामले में उसके पाकिस्तान के हाथ में खेलने पर भारत भी उसकी कमजोर नस दबा सकता है।

सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, पठानकोट हमले के सूत्रधार जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 समिति में प्रतिबंधित किये जाने के प्रस्ताव पर चीन के वीटो ने भारत को हतप्रभ कर दिया था लेकिन चीन में आतंकवादी घोषित डोल्कुन ईसा एवं दो अन्य असंतुष्ट नेताओं के भारत में दलाई लामा के सान्निध्य में इकट्ठा होने की खबरों से चीन सरकार को अहसास हो गया कि भारत उसकी कमजोर नस दबाने से गुरेज नहीं करेगा।

सूत्रों का कहना है कि वीजा विवाद तो एक बानगी भर है। भारत के तरकश में चीन को घेरने के लिये अभी कई और तीर मौजूद हैं।

चीन ने मार्च में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में समिति 1267 में मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में शामिल करने के भारत के प्रस्ताव पर यह कहते हुए वीटो लगा दिया था कि यह मामला सुरक्षा परिषद की‘अपेक्षाओं को पूरा नहीं करता।’चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी कहा कि भारत ने मसूद के बारे में पर्याप्त सबूत नहीं दिये हैं। कूटनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह पाकिस्तान की भाषा थी।

राजनयिक स्तर पर चीनी नेतृत्व के समक्ष उठाये जाने पर भी जब कोई बात नहीं बनी तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 15 अप्रैल को मास्को में रूस भारत चीन (आरआईसी) की मंत्रिस्तरीय बैठक में बैठक के दौरान चीनी विदेश मंत्री वाँग यी के साथ द्विपक्षीय बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की और साफ-साफ कहा कि‘तेरा आतंकवादी, मेरा आतंकवादी’के भेदभाव वाले दृष्टिकोण के साथ आतंकवाद का मसला हल नहीं हो पायेगा।

इसी बीच रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी चीन की यात्रा पर गये और उनकी चीनी रक्षा मंत्री जनरल चांग वानक्वान के साथ चर्चा में भी जैश-ए-मोहम्मद के सरगना के बारे में चीन के रुख पर भारत की आपत्तियों को साफ साफ सामने रखा। उन्होंने चीनी रक्षा मंत्री से कहा कि संयुक्त राष्ट्र में जो कुछ हुआ, वह सही दिशा में नहीं है और उन्हें आतंकवाद पर एक समान रुख अपनाना होगा, जो भारत और चीन दोनों के हित में है। रक्षा मंत्री ने इस मुद्दे के साथ ही पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीन की परियोजनाओं पर स्पष्टीकरण भी मांगा।

रक्षा मंत्री के चीन से लौटने पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी बीजिंग में सीमा मसले पर गठित विशेष प्रतिनिधि वार्ता के 19 वें दौर में भाग लेने गये, जहां उन्होंने अपने चीनी समकक्ष दाई बिंगुओ से मुलाकात में भी आतंकवाद के मुद्दे पर बातचीत की।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने भी नई दिल्ली में बताया कि चीन को हमने अपनी प्रतिक्रिया बहुत स्पष्ट शब्दों में बता दी है। जिन तीनों चैनल की आपने बात की है तीनों लेबल पर हमने चीन को अपनी प्रतिक्रिया बता दी है और ये भी हमने कहा है कि आतंकवाद एक ऐसा मुद्दा है जिस पर दोहरा मानदंड या चयनात्मक दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए।

लेकिन तीनों ही जगहों से भारत को कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। चीन के इस कदम से भारत के खिलाफ पाकिस्तान एवं चीन की साझा रणनीति का एक बदसूरत चेहरा सामने आया। इस पर मोदी सरकार ने कूटनीतिक पराजय मानने की बजाय चीन को उसी की भाषा में जवाब देने की चाल चल दी।

विदेश मंत्रालय एवं गृह मंत्रालय में हुई एक बैठक बुलायी गयी और उसमें कहा गया कि ऐसे काम नहीं चलेगा फिर हिमाचल प्रदेश की वादियों में धर्मशाला के समीप मैक्कलॉडगंज में तिब्बतियों के आजादी समर्थकों के एक सम्मेलन की योजना और उसमें भाग लेने के लिये चीन के आतंकवाद प्रभावित उइगर क्षेत्र के नेता डोल्कुन ईसा के वीजा आवेदन को हरी झंडी दे दी गई।

सूत्रों के अनुसार ईसा ने ई-टूरिस्ट वीजा के लिये आवेदन किया और उन्हे वीजा को जारी कर दिया गया। उधर चीनी असंतुष्ट नेता रे वाँग और लू जिन्गुआ को भी तिब्बतियों के सम्मेलन में आमंत्रित किया गया और उनके वीजा आवेदन भी भारतीय मिशनों में पहुँच गये। मीडिया रिपोर्टों में इन नेताओं के तिब्बतियों के सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा से मुलाकात की खबरें भी सुर्खियों में आ गयीं। भारतीय मीडिया में इसे मसूद अजहर पर चीन के वीटो के भारतीय नेतृत्व के जोरदार जवाब के रूप में प्रचारित किया गया।

चीन विरोधी तत्वों के भारत में जमावड़े और उनके दलाई लामा के खेमे में जाने की खबरों से चीनी नेतृत्व के माथे पर बल पड़ गये। राजनयिक सूत्रों ने बताया कि चीन सरकार इस कदम से तुरंत हरकत में आ गयी। भारत में चीन के राजदूत ली युचेंग ने नई दिल्ली में विदेश सचिव एस जयशंकर से मुलाकात की और उनसे अनुरोध किया कि वह डोल्कुन ईसा और अन्य दोनों असंतुष्ट नेताओं के वीजा के बारे में पुनर्विचार करे।

भारत ने जब उन्हें स्वराज के‘तेरा आतंकवादी मेरा आतंकवादी नहीं’वाले संदेश को याद दिलाया तो चीनी राजदूत ने अपने नेतृत्व की ओर से मसूद अजहर के मुद्दे पर भारतीय पक्ष पर पुनर्विचार किये जाने का संदेश दिया। इसी के बाद डोल्कुन ईसा, रे वाँग और लू जिन्गुआ के वीसा को रद्द किये की खबरें सामने आने लगीं।

सरकार ने हालांकि इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साधे रखी। सरकार ने उनके वीसा रद्द करने की बात स्वीकार तो की मगर इसके पीछे तकनीकी कारण बताये तथा चीन सरकार की ओर से किसी दबाव की बात से इन्कार किया। इस बीच भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं राज्यसभा सदस्य सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि उन्हें बताया गया है कि चीन ना सिर्फ मसूद अजहर बल्कि हाफिज सईद के मुद्दे पर भारत के पक्ष पर विचार कर सकता है बशर्ते उसे‘कुछ और’सबूत मुहैया कराये जायें जो बहुत आसान बात है।

कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार भारत के इस छोटे से कूटनीतिक दाँव ने चीन को ठंडा कर दिया और अब वह भारत के रुख को समझने को तैयार दिख रहा है।

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 समिति में मसूद अजहर पर भारत का प्रस्ताव छह माह तक वैध रहेगा और समिति की अगली बैठक में चीन क्या रुख अपनाता है।

सूत्रों के अनुसार, हालांकि उस पर अभी पूरा भरोसा करना संभव नहीं है और इसलिये भारत ने चीन के अन्य कमजोर पहलुओं पर हाथ रखने की एक योजना भी बना रखी है। सूत्रों ने कहा कि हमारे तरकश में चीन के लिये कई और तीर भी मौजूद हैं। इसके साथ ही अगर चीन भारत के अनुकूल चलता है तो उसके साथ कई और सकारात्मक पहल भी हो सकती हैं।

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