पटना,विनायक विजेता। इंटर टॉपर मामले में विवाद में आए बिहार विद्यालय
परीक्षा समिति और इसके अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिन्हा पर्दे के पीछे से
वर्षों से यह खेल खेल रहें हैं। बीते दिनों बिहार में संपन्न इंटर परीक्षा
में भरे गए फार्म और रजिस्ट्रेशन, परीक्षा की कापियां और टैबलेटिंग के बाद
आए रिजल्ट की गहराई से छानबीन हो तो यह बड़ा रैकेट तो सामने आएगा ही बिहार
समिति और इसके अध्यक्ष के सारे काले कारनामों की पूरी पोल पट्टी खुल जाएगी।
समिति द्वारा प्रत्येक इंटरस्तरीय विद्यालय के लिए इंटर का फार्म भरने के
लिए छात्रों की एक निर्धारित सीमित संख्या निर्धारित की जाती है पर हर
स्कूल और कॉलेज इस सीमित संख्या से तीन गुणा ज्यादा फार्म भरवाते हैं।
परीक्षा के बाद इसकी टैबलेटिंग कोलकाता में करायी जाती है जहां सारा
खेल-वेल होता है। कॉपियों में परीक्षार्थी का अंक कुछ और होता है पर
टैबलेटिंग में उसे कुछ और नंबर दिया जाता है।
पूरे राज्य के परीक्षार्थियों को जिलावार कॉपियों में दिए गए नंबर और टैबलेटिंग लिस्ट का मिलान किया जाए तो काफी बड़ा घोटाला सामने आएगा। पर सरकार इस घोटाले पर से शायद ही पर्दा उठाने की कोशिश करे क्योंकि पूर्व से ही विवाद में रहे समिति के अध्यक्ष प्रो. लालकेश्वर प्रसाद सिंह एक तो नालंदा के निवासी हैं दूसरे वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी हैं।
इस घोटाले के उजागर होने से सरकार को डर है कि उसकी पूरे देश में काफी बदनामी होगी और बिहार के कथित प्रतिभाशाली छात्रों सहित चादर ओढ़कर घी पीने वाले उनके अधिकारियों का कारनामा भी पूरा देश जान जाएगा जो ‘सुशासन’ के विरूद्ध जाएगा। लालकेश्वर प्रसाद सिंहा जब पटना कॉलेज में थे तो वहां भी काफी विवादित रहे और विवि प्रशासन के आदेशों को अक्सर ठेंगा दिखाते थे पर तब भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। 2010 के विधानसभा चुनाव में जब लालकेश्वर प्रसाद ने पैसे और तिकड़म के बल पर जदयू के टिकट पर अपनी पत्नी उषा सिन्हा को हिलसा से विधायक बनवा दिया तो इसके बाद उनका सितारा और बुलन्दियों को छूने लगा।
सूत्र बताते हैं कि पूरे राज्य के हर जिले में बोर्ड के एजेंट भरे पड़े हैं। कमाई का आलम यह है कि बोर्ड के एक-एक किरानी (क्लर्क) ने बीते कुछ ही वर्षो में करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर ली है। लालकेश्वर सिंह पर भी नालंदा के चंडी थाना में जमीन मामला और धोखाधड़ी का एक मामला दर्ज है। बस अब देखना यह है कि बिहार के इस ‘व्यापम घोटाले’ के प्रति सरकार का रुख कठोर रहता है या फिर पूर्व की तरह लचीला ही।
पूरे राज्य के परीक्षार्थियों को जिलावार कॉपियों में दिए गए नंबर और टैबलेटिंग लिस्ट का मिलान किया जाए तो काफी बड़ा घोटाला सामने आएगा। पर सरकार इस घोटाले पर से शायद ही पर्दा उठाने की कोशिश करे क्योंकि पूर्व से ही विवाद में रहे समिति के अध्यक्ष प्रो. लालकेश्वर प्रसाद सिंह एक तो नालंदा के निवासी हैं दूसरे वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी हैं।
इस घोटाले के उजागर होने से सरकार को डर है कि उसकी पूरे देश में काफी बदनामी होगी और बिहार के कथित प्रतिभाशाली छात्रों सहित चादर ओढ़कर घी पीने वाले उनके अधिकारियों का कारनामा भी पूरा देश जान जाएगा जो ‘सुशासन’ के विरूद्ध जाएगा। लालकेश्वर प्रसाद सिंहा जब पटना कॉलेज में थे तो वहां भी काफी विवादित रहे और विवि प्रशासन के आदेशों को अक्सर ठेंगा दिखाते थे पर तब भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। 2010 के विधानसभा चुनाव में जब लालकेश्वर प्रसाद ने पैसे और तिकड़म के बल पर जदयू के टिकट पर अपनी पत्नी उषा सिन्हा को हिलसा से विधायक बनवा दिया तो इसके बाद उनका सितारा और बुलन्दियों को छूने लगा।
सूत्र बताते हैं कि पूरे राज्य के हर जिले में बोर्ड के एजेंट भरे पड़े हैं। कमाई का आलम यह है कि बोर्ड के एक-एक किरानी (क्लर्क) ने बीते कुछ ही वर्षो में करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर ली है। लालकेश्वर सिंह पर भी नालंदा के चंडी थाना में जमीन मामला और धोखाधड़ी का एक मामला दर्ज है। बस अब देखना यह है कि बिहार के इस ‘व्यापम घोटाले’ के प्रति सरकार का रुख कठोर रहता है या फिर पूर्व की तरह लचीला ही।
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