नई दिल्ली (सं.सू.)। उत्तराखंड के बाद अब अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की सरकार को फिर से बहाल करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्यपाल के फैसले को ग़लत बताया और 15 दिसंबर 2015 की स्थिति बहाल करने का आदेश दिया। उस वक्त राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और नबाम तुकी सीएम थे।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सलाह किए बिना ही राज्यपाल द्वारा विधानसभा सत्र के बुलाए जाने को असंवैधानिक करार दिया। विधानसभा का सत्र 14 जनवरी से शुरू होना था। लेकिन, इसे 16 दिसंबर को ही बुला लिया गया। राज्यपाल ने सत्र का एजेंडा भी खुद ही तय कर दिया। स्पीकर को हटाने संबंधी प्रस्ताव को कार्यवाही की लिस्ट में सबसे पहले रख दिया।
कांग्रेस विधायकों ने डिप्टी स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव दिया था लेकिन राज्यपाल ने बीजेपी के 11 विधायकों की मांग पहले सुनी जिसमें स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा सत्र बुलाने और उसके बाद हुई विधानसभा की कार्यवाही को असंवैधानिक करार दे दिया है। अरुणाचल में 60 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 42 सीटें मिली थीं। लेकिन अब कांग्रेस के कई विधायक कई बागी हो चुके हैं।
गौरतलब है कि न्यायमूर्ति जेएस शेखर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फरवरी में फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस फैसले का असर न सिर्फ अरूणाचल प्रदेश पर, बल्कि प्रत्येक राज्य पर होगा। पीठ ने याचिकाओं के दो अन्य सेट को पृथक कर दिया था। जो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने और फिर इसे हटाए जाने, जिसके बाद नयी सरकार का गठन हुआ था, को लेकर दायर की गई थीं।
उच्चतम न्यायालय द्वारा फरवरी में फैसला सुरक्षित रखे जाने से थोड़ी देर पहले ही बागी कांग्रेस नेता कालिखो पुल ने अरूणाचल प्रदेश के नौवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उनके साथ कांग्रेस के 18 असंतुष्ट विधायक, दो निर्दलियों का समर्थन और बीजेपी के 11 विधायकों का बाहरी समर्थन था।
जिस दिन पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा था, उस दिन इसने पुल के नेतृत्व वाली सरकार के ‘अवैध’ शपथग्रहण के खिलाफ कांग्रेस की याचिका पर अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था। साथ ही कहा था कि यदि राज्यपाल की कार्रवाई असंवैधानिक पाई जाती है तो वह ‘घड़ी को उल्टा घुमा सकती है। ’
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सलाह किए बिना ही राज्यपाल द्वारा विधानसभा सत्र के बुलाए जाने को असंवैधानिक करार दिया। विधानसभा का सत्र 14 जनवरी से शुरू होना था। लेकिन, इसे 16 दिसंबर को ही बुला लिया गया। राज्यपाल ने सत्र का एजेंडा भी खुद ही तय कर दिया। स्पीकर को हटाने संबंधी प्रस्ताव को कार्यवाही की लिस्ट में सबसे पहले रख दिया।
कांग्रेस विधायकों ने डिप्टी स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव दिया था लेकिन राज्यपाल ने बीजेपी के 11 विधायकों की मांग पहले सुनी जिसमें स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा सत्र बुलाने और उसके बाद हुई विधानसभा की कार्यवाही को असंवैधानिक करार दे दिया है। अरुणाचल में 60 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 42 सीटें मिली थीं। लेकिन अब कांग्रेस के कई विधायक कई बागी हो चुके हैं।
गौरतलब है कि न्यायमूर्ति जेएस शेखर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फरवरी में फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस फैसले का असर न सिर्फ अरूणाचल प्रदेश पर, बल्कि प्रत्येक राज्य पर होगा। पीठ ने याचिकाओं के दो अन्य सेट को पृथक कर दिया था। जो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने और फिर इसे हटाए जाने, जिसके बाद नयी सरकार का गठन हुआ था, को लेकर दायर की गई थीं।
उच्चतम न्यायालय द्वारा फरवरी में फैसला सुरक्षित रखे जाने से थोड़ी देर पहले ही बागी कांग्रेस नेता कालिखो पुल ने अरूणाचल प्रदेश के नौवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उनके साथ कांग्रेस के 18 असंतुष्ट विधायक, दो निर्दलियों का समर्थन और बीजेपी के 11 विधायकों का बाहरी समर्थन था।
जिस दिन पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा था, उस दिन इसने पुल के नेतृत्व वाली सरकार के ‘अवैध’ शपथग्रहण के खिलाफ कांग्रेस की याचिका पर अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था। साथ ही कहा था कि यदि राज्यपाल की कार्रवाई असंवैधानिक पाई जाती है तो वह ‘घड़ी को उल्टा घुमा सकती है। ’
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