पटना (सं.सू.)। बच्चों पर बस्ते का बोझ कम करने और ज्यादा सीखने के उद्देश्य से पहली और दूसरी कक्षा में वर्क बुक लागू किया गया। इतना ही नहीं, साल में दो बार वर्क बुक देने की घोषणा की गयी। लेकिन, असली सवाल यह है कि जब साल भर में एक ही बार किताबों को सरकार नहीं दे पा रही है, तो दूसरी बार वह कहां से दे पायेंगी। साल खत्म होने को है और स्कूल में बच्चे अब भी किताबों का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में बच्चे बिना किताब के कैसे पढ़ाई करें।
गौरतलब है कि बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की आेर से पहली और दूसरी कक्षा के बच्चे के लिए साल में दो बार वर्क बुक दिया जाना है, ताकि बच्चों को समय पर किताबें मिलें, पर समय पर किताब नहीं मिलने से उनकी पढ़ाई का बोझ कम होने के बजाय बढ़ ही गया है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के निर्देश पर गुजरात की निजी एजेंसी एजुकेशन सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के द्वारा पहली और दूसरी कक्षा का मॉडयूल तैयार किया गया। इसके तहत हिंदी,अंगरेजी, गणित और सामान्य विषय की कुल चार किताबें बच्चों को दी जानी है। ये किताबें साल में दो बार बच्चों को दी जानी है।
यानी छह माह पढ़ाई के बाद दूसरी किस्त की किताबें दी जानी हैं। किताबों की छपाई बिहार टेक्स्टबुक कॉरपोरेशन द्वारा निर्धारित है, जबिक स्कूलों में आलम यह है कि अप्रैल माह में दी जाने वाली किताबें अक्सर सितंबर माह में स्कूलों में पहुंचती हैं। इससे पूरे छह महीने के इंतजार के बाद बच्चों को किताब मिल पाती हैं। ऐसे में साल में दो बार दी जानेवाली किताबें अब बच्चों को साल खत्म होने के बाद ही मिल पायेंगी।
बीते वर्ष 2014-15 में स्कूलों में मिलनेवाली किताबों की लेट-लतीफी को देखते हुए इस वर्ष के लिए नौ माह पहले ही बिहार टेक्सटबुक कॉरपोरेशन को किताबें छापने का टेंडर दिया गया था।इसके अनुसार जनवरी से फरवरी माह में किताबों की छपाई कर मार्च से उसे स्कूलों में भेजा जाना था, जबकि स्कूलों में जब दूसरी किस्त की किताबें दी जानी थी, तो सितंबर माह में पहली किस्त की ही किताब मिल पा रही है। इससे बच्चों को बगैर किताबों की पढ़ाई करनी पड़ रही है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की ओर से प्रतिवर्ष बिहार टेक्स्ट बुक कॉरपोरेशन द्वारा किताबें प्रिंट करायी जाती हैं। पहली से आठवीं कक्षा की किताबों का प्रिंट कर उसे अलग-अलग सेट तैयार कर स्कूलों में बच्चों को भेजी जाती है। सत्र 2015-16 के लिए पूरे बिहार भर में दो करोड़ छह लाख 77 हजार 827 बच्चों के लिए किताबें प्रिंट की जानी हैं। इसके लिए लगभग 356 करोड़ का टेंडर भी किया गया है। इनमें पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों की संख्या 55 लाख 12 हजार 634 है, ताकि किताबों की छपाई शुरू की जा सके।
बावजूद इसके पिछले कई वर्षों से लगातार सरकारी स्कूलों में समय पर किताबें नहीं पहुंच सकी है। आधे से अधिक साल किताबों के इंतजार में बी जाते हैं। इन कारणों से होती है देर पेज व किताबों की प्रिटिंग के लिए दूसरे राज्यों में निर्भरता होने के कारण प्रतिवर्ष किताबें समय पर नहीं मिल पाती हैं। पश्चिम बंगाल से पेज मंगाये जाते हैं, तो प्रिटिंग का काम उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से कराया जाता है। कॉरपोरेशन की लेट-लतीफी अलग से है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के डाॅ उदय कुमार ने बताया कि प्रति वर्ष स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या के अनुसार किताबें छापने की सूची तैयार की जाती है। इसमें अलग वर्ग के लिए अलग-अलग किताबों का सेट तैयार किया जाता है। ये किताबें प्रतिवर्ष छपवायी जाती हैं। इससे बच्चों के बीच प्रति वर्ष नयी किताबें वितरित की जाती हैं। कक्षा एक और दो के लिए चार किताबों का सेट, वर्ग तीन से पांच के लिए आठ किताबों व छह से आठ के लिए कुल नौ किताबों का सेट उपलब्ध कराया जाता है।
पिछले चार- पांच सालों से स्कूल में समय पर किताब नहीं आ पाती हैं। इससे बच्चों को पुरानी किताबों के सहारे पढ़ाई करवानी पड़ती है। साल खत्म होने को आयी है, पर पहली व दूसरी कक्षा के बच्चों की दूसरी किस्त की किताब अब तक स्कूल में नहीं पहुंच सकी है। इससे बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। बच्चे स्कूल में तो पढ़ लेते हैं, लेकिन किताबें नहीं होने से घर में पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। इससे वे पढ़ाई हुई चीजों का अभ्यास नहीं कर पाते हैं। ( डॉ भोला पासवान, अखिल भारतीय प्रारंभिक शिक्षक महासंघ के राष्ट्रीय सचिव)
स्कूल में सभी नामांकित बच्चों को लिए किताब नहीं भेजी गयी हैं। साथ ही पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों के लिए सितंबर माह में जो किताबें भेजी गयी थीं, अभी भी उसी से पढ़ायी जा रही है। वर्क बुक पूरा कराने के बाद बच्चों को अलग से कॉपी पर पढ़ायी जा रही है। छह माह बीत जाने के बाद स्कूल में किताबें पहुंचती हैं। (नंद किशोर शर्मा, प्रधानाचार्य, बालक मध्य विद्यालय, गोलघर पार्क) का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में बच्चे बिना किताब के कैसे पढ़ाई करें।
गौरतलब है कि बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की आेर से पहली और दूसरी कक्षा के बच्चे के लिए साल में दो बार वर्क बुक दिया जाना है, ताकि बच्चों को समय पर किताबें मिलें, पर समय पर किताब नहीं मिलने से उनकी पढ़ाई का बोझ कम होने के बजाय बढ़ ही गया है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के निर्देश पर गुजरात की निजी एजेंसी एजुकेशन सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के द्वारा पहली और दूसरी कक्षा का मॉडयूल तैयार किया गया। इसके तहत हिंदी,अंग्रेजी, गणित और सामान्य विषय की कुल चार किताबें बच्चों को दी जानी है। ये किताबें साल में दो बार बच्चों को दी जानी है।
यानी छह माह पढ़ाई के बाद दूसरी किस्त की किताबें दी जानी हैं। किताबों की छपाई बिहार टेक्स्टबुक कॉरपोरेशन द्वारा निर्धारित है, जबिक स्कूलों में आलम यह है कि अप्रैल माह में दी जाने वाली किताबें अक्सर सितंबर माह में स्कूलों में पहुंचती हैं। इससे पूरे छह महीने के इंतजार के बाद बच्चों को किताब मिल पाती हैं। ऐसे में साल में दो बार दी जानेवाली किताबें अब बच्चों को साल खत्म होने के बाद ही मिल पायेंगी।
बीते वर्ष 2014-15 में स्कूलों में मिलनेवाली किताबों की लेट-लतीफी को देखते हुए इस वर्ष के लिए नौ माह पहले ही बिहार टेक्सटबुक कॉरपोरेशन को किताबें छापने का टेंडर दिया गया था।इसके अनुसार जनवरी से फरवरी माह में किताबों की छपाई कर मार्च से उसे स्कूलों में भेजा जाना था, जबकि स्कूलों में जब दूसरी किस्त की किताबें दी जानी थी, तो सितंबर माह में पहली किस्त की ही किताब मिल पा रही है। इससे बच्चों को बगैर किताबों की पढ़ाई करनी पड़ रही है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की ओर से प्रतिवर्ष बिहार टेक्स्ट बुक कॉरपोरेशन द्वारा किताबें प्रिंट करायी जाती हैं। पहली से आठवीं कक्षा की किताबों का प्रिंट कर उसे अलग-अलग सेट तैयार कर स्कूलों में बच्चों को भेजी जाती है। सत्र 2015-16 के लिए पूरे बिहार भर में दो करोड़ छह लाख 77 हजार 827 बच्चों के लिए किताबें प्रिंट की जानी हैं। इसके लिए लगभग 356 करोड़ का टेंडर भी किया गया है। इनमें पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों की संख्या 55 लाख 12 हजार 634 है, ताकि किताबों की छपाई शुरू की जा सके।
बावजूद इसके पिछले कई वर्षों से लगातार सरकारी स्कूलों में समय पर किताबें नहीं पहुंच सकी है। आधे से अधिक साल किताबों के इंतजार में बी जाते हैं। इन कारणों से होती है देर पेज व किताबों की प्रिटिंग के लिए दूसरे राज्यों में निर्भरता होने के कारण प्रतिवर्ष किताबें समय पर नहीं मिल पाती हैं। पश्चिम बंगाल से पेज मंगाये जाते हैं, तो प्रिटिंग का काम उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से कराया जाता है। कॉरपोरेशन की लेट-लतीफी अलग से है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के डाॅ उदय कुमार ने बताया कि प्रति वर्ष स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या के अनुसार किताबें छापने की सूची तैयार की जाती है। इसमें अलग वर्ग के लिए अलग-अलग किताबों का सेट तैयार किया जाता है। ये किताबें प्रतिवर्ष छपवायी जाती हैं। इससे बच्चों के बीच प्रति वर्ष नयी किताबें वितरित की जाती हैं। कक्षा एक और दो के लिए चार किताबों का सेट, वर्ग तीन से पांच के लिए आठ किताबों व छह से आठ के लिए कुल नौ किताबों का सेट उपलब्ध कराया जाता है।
पिछले चार- पांच सालों से स्कूल में समय पर किताब नहीं आ पाती हैं। इससे बच्चों को पुरानी किताबों के सहारे पढ़ाई करवानी पड़ती है। साल खत्म होने को आयी है, पर पहली व दूसरी कक्षा के बच्चों की दूसरी किस्त की किताब अब तक स्कूल में नहीं पहुंच सकी है। इससे बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। बच्चे स्कूल में तो पढ़ लेते हैं, लेकिन किताबें नहीं होने से घर में पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। इससे वे पढ़ाई हुई चीजों का अभ्यास नहीं कर पाते हैं। ( डॉ भोला पासवान, अखिल भारतीय प्रारंभिक शिक्षक महासंघ के राष्ट्रीय सचिव)
स्कूल में सभी नामांकित बच्चों को लिए किताब नहीं भेजी गयी हैं। साथ ही पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों के लिए सितंबर माह में जो किताबें भेजी गयी थीं, अभी भी उसी से पढ़ायी जा रही है। वर्क बुक पूरा कराने के बाद बच्चों को अलग से कॉपी पर पढ़ायी जा रही है। छह माह बीत जाने के बाद स्कूल में किताबें पहुंचती हैं। (नंद किशोर शर्मा, प्रधानाचार्य, बालक मध्य विद्यालय, गोलघर पार्क)
गौरतलब है कि बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की आेर से पहली और दूसरी कक्षा के बच्चे के लिए साल में दो बार वर्क बुक दिया जाना है, ताकि बच्चों को समय पर किताबें मिलें, पर समय पर किताब नहीं मिलने से उनकी पढ़ाई का बोझ कम होने के बजाय बढ़ ही गया है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के निर्देश पर गुजरात की निजी एजेंसी एजुकेशन सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के द्वारा पहली और दूसरी कक्षा का मॉडयूल तैयार किया गया। इसके तहत हिंदी,अंगरेजी, गणित और सामान्य विषय की कुल चार किताबें बच्चों को दी जानी है। ये किताबें साल में दो बार बच्चों को दी जानी है।
यानी छह माह पढ़ाई के बाद दूसरी किस्त की किताबें दी जानी हैं। किताबों की छपाई बिहार टेक्स्टबुक कॉरपोरेशन द्वारा निर्धारित है, जबिक स्कूलों में आलम यह है कि अप्रैल माह में दी जाने वाली किताबें अक्सर सितंबर माह में स्कूलों में पहुंचती हैं। इससे पूरे छह महीने के इंतजार के बाद बच्चों को किताब मिल पाती हैं। ऐसे में साल में दो बार दी जानेवाली किताबें अब बच्चों को साल खत्म होने के बाद ही मिल पायेंगी।
बीते वर्ष 2014-15 में स्कूलों में मिलनेवाली किताबों की लेट-लतीफी को देखते हुए इस वर्ष के लिए नौ माह पहले ही बिहार टेक्सटबुक कॉरपोरेशन को किताबें छापने का टेंडर दिया गया था।इसके अनुसार जनवरी से फरवरी माह में किताबों की छपाई कर मार्च से उसे स्कूलों में भेजा जाना था, जबकि स्कूलों में जब दूसरी किस्त की किताबें दी जानी थी, तो सितंबर माह में पहली किस्त की ही किताब मिल पा रही है। इससे बच्चों को बगैर किताबों की पढ़ाई करनी पड़ रही है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की ओर से प्रतिवर्ष बिहार टेक्स्ट बुक कॉरपोरेशन द्वारा किताबें प्रिंट करायी जाती हैं। पहली से आठवीं कक्षा की किताबों का प्रिंट कर उसे अलग-अलग सेट तैयार कर स्कूलों में बच्चों को भेजी जाती है। सत्र 2015-16 के लिए पूरे बिहार भर में दो करोड़ छह लाख 77 हजार 827 बच्चों के लिए किताबें प्रिंट की जानी हैं। इसके लिए लगभग 356 करोड़ का टेंडर भी किया गया है। इनमें पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों की संख्या 55 लाख 12 हजार 634 है, ताकि किताबों की छपाई शुरू की जा सके।
बावजूद इसके पिछले कई वर्षों से लगातार सरकारी स्कूलों में समय पर किताबें नहीं पहुंच सकी है। आधे से अधिक साल किताबों के इंतजार में बी जाते हैं। इन कारणों से होती है देर पेज व किताबों की प्रिटिंग के लिए दूसरे राज्यों में निर्भरता होने के कारण प्रतिवर्ष किताबें समय पर नहीं मिल पाती हैं। पश्चिम बंगाल से पेज मंगाये जाते हैं, तो प्रिटिंग का काम उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से कराया जाता है। कॉरपोरेशन की लेट-लतीफी अलग से है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के डाॅ उदय कुमार ने बताया कि प्रति वर्ष स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या के अनुसार किताबें छापने की सूची तैयार की जाती है। इसमें अलग वर्ग के लिए अलग-अलग किताबों का सेट तैयार किया जाता है। ये किताबें प्रतिवर्ष छपवायी जाती हैं। इससे बच्चों के बीच प्रति वर्ष नयी किताबें वितरित की जाती हैं। कक्षा एक और दो के लिए चार किताबों का सेट, वर्ग तीन से पांच के लिए आठ किताबों व छह से आठ के लिए कुल नौ किताबों का सेट उपलब्ध कराया जाता है।
पिछले चार- पांच सालों से स्कूल में समय पर किताब नहीं आ पाती हैं। इससे बच्चों को पुरानी किताबों के सहारे पढ़ाई करवानी पड़ती है। साल खत्म होने को आयी है, पर पहली व दूसरी कक्षा के बच्चों की दूसरी किस्त की किताब अब तक स्कूल में नहीं पहुंच सकी है। इससे बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। बच्चे स्कूल में तो पढ़ लेते हैं, लेकिन किताबें नहीं होने से घर में पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। इससे वे पढ़ाई हुई चीजों का अभ्यास नहीं कर पाते हैं। ( डॉ भोला पासवान, अखिल भारतीय प्रारंभिक शिक्षक महासंघ के राष्ट्रीय सचिव)
स्कूल में सभी नामांकित बच्चों को लिए किताब नहीं भेजी गयी हैं। साथ ही पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों के लिए सितंबर माह में जो किताबें भेजी गयी थीं, अभी भी उसी से पढ़ायी जा रही है। वर्क बुक पूरा कराने के बाद बच्चों को अलग से कॉपी पर पढ़ायी जा रही है। छह माह बीत जाने के बाद स्कूल में किताबें पहुंचती हैं। (नंद किशोर शर्मा, प्रधानाचार्य, बालक मध्य विद्यालय, गोलघर पार्क) का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में बच्चे बिना किताब के कैसे पढ़ाई करें।
गौरतलब है कि बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की आेर से पहली और दूसरी कक्षा के बच्चे के लिए साल में दो बार वर्क बुक दिया जाना है, ताकि बच्चों को समय पर किताबें मिलें, पर समय पर किताब नहीं मिलने से उनकी पढ़ाई का बोझ कम होने के बजाय बढ़ ही गया है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के निर्देश पर गुजरात की निजी एजेंसी एजुकेशन सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के द्वारा पहली और दूसरी कक्षा का मॉडयूल तैयार किया गया। इसके तहत हिंदी,अंग्रेजी, गणित और सामान्य विषय की कुल चार किताबें बच्चों को दी जानी है। ये किताबें साल में दो बार बच्चों को दी जानी है।
यानी छह माह पढ़ाई के बाद दूसरी किस्त की किताबें दी जानी हैं। किताबों की छपाई बिहार टेक्स्टबुक कॉरपोरेशन द्वारा निर्धारित है, जबिक स्कूलों में आलम यह है कि अप्रैल माह में दी जाने वाली किताबें अक्सर सितंबर माह में स्कूलों में पहुंचती हैं। इससे पूरे छह महीने के इंतजार के बाद बच्चों को किताब मिल पाती हैं। ऐसे में साल में दो बार दी जानेवाली किताबें अब बच्चों को साल खत्म होने के बाद ही मिल पायेंगी।
बीते वर्ष 2014-15 में स्कूलों में मिलनेवाली किताबों की लेट-लतीफी को देखते हुए इस वर्ष के लिए नौ माह पहले ही बिहार टेक्सटबुक कॉरपोरेशन को किताबें छापने का टेंडर दिया गया था।इसके अनुसार जनवरी से फरवरी माह में किताबों की छपाई कर मार्च से उसे स्कूलों में भेजा जाना था, जबकि स्कूलों में जब दूसरी किस्त की किताबें दी जानी थी, तो सितंबर माह में पहली किस्त की ही किताब मिल पा रही है। इससे बच्चों को बगैर किताबों की पढ़ाई करनी पड़ रही है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की ओर से प्रतिवर्ष बिहार टेक्स्ट बुक कॉरपोरेशन द्वारा किताबें प्रिंट करायी जाती हैं। पहली से आठवीं कक्षा की किताबों का प्रिंट कर उसे अलग-अलग सेट तैयार कर स्कूलों में बच्चों को भेजी जाती है। सत्र 2015-16 के लिए पूरे बिहार भर में दो करोड़ छह लाख 77 हजार 827 बच्चों के लिए किताबें प्रिंट की जानी हैं। इसके लिए लगभग 356 करोड़ का टेंडर भी किया गया है। इनमें पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों की संख्या 55 लाख 12 हजार 634 है, ताकि किताबों की छपाई शुरू की जा सके।
बावजूद इसके पिछले कई वर्षों से लगातार सरकारी स्कूलों में समय पर किताबें नहीं पहुंच सकी है। आधे से अधिक साल किताबों के इंतजार में बी जाते हैं। इन कारणों से होती है देर पेज व किताबों की प्रिटिंग के लिए दूसरे राज्यों में निर्भरता होने के कारण प्रतिवर्ष किताबें समय पर नहीं मिल पाती हैं। पश्चिम बंगाल से पेज मंगाये जाते हैं, तो प्रिटिंग का काम उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से कराया जाता है। कॉरपोरेशन की लेट-लतीफी अलग से है।
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के डाॅ उदय कुमार ने बताया कि प्रति वर्ष स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या के अनुसार किताबें छापने की सूची तैयार की जाती है। इसमें अलग वर्ग के लिए अलग-अलग किताबों का सेट तैयार किया जाता है। ये किताबें प्रतिवर्ष छपवायी जाती हैं। इससे बच्चों के बीच प्रति वर्ष नयी किताबें वितरित की जाती हैं। कक्षा एक और दो के लिए चार किताबों का सेट, वर्ग तीन से पांच के लिए आठ किताबों व छह से आठ के लिए कुल नौ किताबों का सेट उपलब्ध कराया जाता है।
पिछले चार- पांच सालों से स्कूल में समय पर किताब नहीं आ पाती हैं। इससे बच्चों को पुरानी किताबों के सहारे पढ़ाई करवानी पड़ती है। साल खत्म होने को आयी है, पर पहली व दूसरी कक्षा के बच्चों की दूसरी किस्त की किताब अब तक स्कूल में नहीं पहुंच सकी है। इससे बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। बच्चे स्कूल में तो पढ़ लेते हैं, लेकिन किताबें नहीं होने से घर में पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। इससे वे पढ़ाई हुई चीजों का अभ्यास नहीं कर पाते हैं। ( डॉ भोला पासवान, अखिल भारतीय प्रारंभिक शिक्षक महासंघ के राष्ट्रीय सचिव)
स्कूल में सभी नामांकित बच्चों को लिए किताब नहीं भेजी गयी हैं। साथ ही पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों के लिए सितंबर माह में जो किताबें भेजी गयी थीं, अभी भी उसी से पढ़ायी जा रही है। वर्क बुक पूरा कराने के बाद बच्चों को अलग से कॉपी पर पढ़ायी जा रही है। छह माह बीत जाने के बाद स्कूल में किताबें पहुंचती हैं। (नंद किशोर शर्मा, प्रधानाचार्य, बालक मध्य विद्यालय, गोलघर पार्क)
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