नई दिल्ली (सं.सू.)। हाल ही में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कुछ खास हस्तियों को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया। इन हस्तियों के बारे में आमतौर पर लोग पहले से जानते थे। फिर भी यदि किसी के बारे में नहीं जानते थे तो टीवी, अखबार और सोशल मीडिया ने इन लोगों के बारे में बढ़-चढ़ कर बताया। देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाली इन शख्सियतों में से एक हैं- ओडिशा के हलधर नाग। इनके बारे में ना तो समाचारों में ही ज्यादा चर्चा हुई और न ही सोशल मीडिया पर कुछ आया। लेकिन इस सम्मान तक पहुंचने वाले नाग की कहानी काफी प्रेरणादायक है।
हाल ही में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कुछ खास हस्तियों को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया। इन हस्तियों के बारे में आमतौर पर लोग पहले से जानते थे। फिर भी यदि किसी के बारे में नहीं जानते थे तो टीवी, अखबार और सोशल मीडिया ने इन लोगों के बारे में बढ़-चढ़ कर बताया। देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाली इन शख्सियतों में से एक हैं- ओडिशा के हलधर नाग। इनके बारे में ना तो समाचारों में ही ज्यादा चर्चा हुई और न ही सोशल मीडिया पर कुछ आया। लेकिन इस सम्मान तक पहुंचने वाले नाग की कहानी काफी प्रेरणादायक है।
हलधर नाग एक गरीब परिवार से आते हैं और उन्होंने तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी थी। वह मुश्किल से स्कूल गए लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे कि वह आज पीएचडी करने वाले छात्रों के सबजेक्ट की लिस्ट में हमेशा शामिल रहते हैं। उनके नाम पर पांच थिसिस दर्ज हैं और जल्द ही वह ओडि़शा स्थित संबलपुर यूनिवर्सिटी के सेलेबस का हिस्सा होंगे। एक नजर डालिए कौन हैं कवि हलधर है और कैसी रही है उनकी अब तक जिंदगी।
नाग का जन्म ओड़िशा बाडग़ढ़ जिले के घेंस गांव में एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। वह तीसरी कक्षा के बाद आगे पढ़ाई नहीं कर पाए थे। जब वह 10 वर्ष के थे उनके पिता का देहांत हो गया और उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था। हलधर नाग कहते हैं कि एक विधवा के बच्चे का जीवन बहुत ही मुश्किल भरा रहता है। हलधर के मुताबिक उन्होंने पास ही की एक मिठाई की दुकान में बर्तन मांजने का काम शुरू कर दिया ताकि वो अपने परिवार की आर्थिक तौर पर सहायता कर सकें।
दो साल बाद एक गांव के सरपंच उन्हें हाईस्कूल ले गए लेकिन यहां पर उन्होंने पढ़ाई नहीं की, बल्कि एक कुक के तौर पर काम किया। 16 साल तक वे यहां पर कुक के तौर पर रहे। धीरे-धीरे उस इलाके में कई स्कूल आने लगे। फिर हलधर नाग ने बैंक से 1,000 रुपए लोन लेकर स्कूली बच्चों के लिए स्टेशनरी और खाने-पीने के दूसरे सामानों वाली एक छोटी दुकान खोल ली।
नाग ने अपनी पहली कविता धोडो बारगाछ वर्ष 1990 में लिखी थी। इसका मतलब होता है बरगद का बूढ़ा पेड़ और इसे एक लोकल मैगजीन में जगह मिली थी। इसके बाद उन्होंने अपनी चार कविताओं को पब्लिश होने के लिए भेजा। उन्होंने गांव वालों को अपनी कविताएं सुनाना शुरू किया जिससे वह उन्हें याद रख सकें और गांववाले भी बड़े प्यार से उनकी कविताएं सुनते थे। लोगों को हलधर की कविताएं इतनी पसंद आई कि वो उन्हें लोक कवि के नाम से बुलाने लगे।
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