मुंबई (सं.सू.)। देश में चालू कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही के दौरान सोने की मांग में 39 फीसदी की भारी-भरकम गिरावट दर्ज की गई है। ग्राहकों के कीमतें कम होने की उम्मीद में खरीदारी टालने से मांग गिरी है। वैश्विक खनिकों की प्रतिनिधि संस्था विश्व स्वर्ण परिषद (डब्ल्यूजीसी) के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में जनवरी से मार्च 2016 के दौरान सोने की कुल मांग घटकर 116.5 टन रही, जिसकी कीमत 29,900 करोड़ रुपये (4.4 अरब डॉलर) थी। वहीं, पिछले साल की इसी अवधि में मांग 191.7 टन रही थी, जिसकी कीमत 46,730 करोड़ रुपये (7.5 अरब डॉलर) थी। भारत में जनवरी-मार्च तिमाही में सोने की आभूषण और निवेश दोनों मांग गिरी। आभूषणों की मांग 41 फीसदी घटकर 88.4 टन रही, जो 2015 की जनवरी-मार्च तिमाही में 150.8 टन थी। सोने की निवेश मांग 31 फीसदी गिरकर 28 टन रही, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 40.9 टन थी। पूरे वर्ष 2016 में भारत की स्वर्ण मांग 850 से 950 टन के बीच रहने का अनुमान है। यह पिछले साल से करीब 50 से 150 टन कम है।
डब्ल्यूजीसी के प्रबंध निदेशक (भारत) सोमसुंदरम पीआर ने कहा, 'उत्पाद शुल्क फिर लागू किए जाने के विरोध में हुई सराफों की हड़ताल के कारण भारत में सोने की मांग प्रभावित हुई। इससे वैवाहिक खरीदार भी प्रभावित हुए। यह मांग कम होने का प्रमुख कारण था। इस साल की शुरुआत से सोने की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी और सोने पर सीमा शुल्क में कटौती की उम्मीद में ग्राहकों ने खरीदारी टाली।' भारत का सोने का आयात भी 2016 की जनवरी-मार्च तिमाही में 39 फीसदी घटकर 134.4 टन रहा, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 220.2 टन था।
उन्होंने कहा कि ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि 2 लाख रुपये से अधिक की खरीद पर स्थायी खाता संख्या (पैन) का ब्योरा अनिवार्य किए जाने का भी खरीदारी पर असर पड़ा है। इस साल की शुरुआत से सोने की कीमतें करीब 17 फीसदी बढ़ चुकी हैं। इस वजह से ग्राहकों ने कीमतों में बढ़ोतरी को अस्थायी मानते हुए अपनी खरीदारी टाली है, जिससे मांग कम हुई है। गौरतलब है कि फरवरी में सोने की कीमतों में अचानक तेजी आई थी, इसलिए खरीदारों ने कीमतों में स्थिरता आने का इंतजार किया। इसके बाद सराफों की 42 से अधिक दिन की हड़ताल चली, इसलिए भारत ने चालू कैलेंडर वर्ष के पहले दो महीने गंवा दिए। सोमसुंदरम ने कहा, 'अब भी सोने की कीमतों में तेजी लाने वाले कारक अत्यधिक सकारात्मक हैं।
आमतौर पर साल की दूसरी छमाही में सोने की मांग अच्छी होती है। वहीं, मॉनसून की बारिश के सकारात्मक पूर्वानुमान, सावधि जमा और सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) सहित वित्तीय योजनाओं में कम ब्याज दर और शेयर बाजारों में भारी उतार-चढ़ाव जैसे कारक सोने की खरीदारी के लिए अत्यधिक सकारात्मक हैं।' इस बीच निवेश मांग में अच्छी वृद्धि की बदौलत चालू कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में सोने की वैश्विक मांग 21 फीसदी बढ़ी है। चालू कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में वैश्विक मांग 1,289.8 टन रही। इसमें कुल निवेश मांग 122 फीसदी बढ़कर 617.6 टन रही। इसमें एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) में निवेशकों के बढ़ते विश्वास का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। आलोच्य अवधि में ईटीएफ में मांग करीब 300 फीसदी बढ़कर 363.7 टन रही, जो पिछले साल की इसी अवधि में महज 25.6 टन थी।
सोमसुंदरम ने कहा कि इस समय भारत के केंद्रीय बैंक के पास अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा 6 फीसदी है, जबकि चीन में यह महज 2 फीसदी है। उन्होंने कहा, 'रूस और चीन के केंद्रीय बैंकों ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा बढ़ाया है। इस तरह भारतीय रिजर्व बैंक का अपने भंडार में सोना बढ़ाने का फैसला रणनीतिक हो सकता है। आमतौर पर केंद्रीय बैंक डॉलर पर निर्भरता घटाने के लिए भंडार में सोना बढ़ाते हैं।' स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के बारे में सोमसुंदरम ने कहा कि बैंकों को सोना खरीदने की स्वीकृति दी जानी चाहिए।
डब्ल्यूजीसी के प्रबंध निदेशक (भारत) सोमसुंदरम पीआर ने कहा, 'उत्पाद शुल्क फिर लागू किए जाने के विरोध में हुई सराफों की हड़ताल के कारण भारत में सोने की मांग प्रभावित हुई। इससे वैवाहिक खरीदार भी प्रभावित हुए। यह मांग कम होने का प्रमुख कारण था। इस साल की शुरुआत से सोने की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी और सोने पर सीमा शुल्क में कटौती की उम्मीद में ग्राहकों ने खरीदारी टाली।' भारत का सोने का आयात भी 2016 की जनवरी-मार्च तिमाही में 39 फीसदी घटकर 134.4 टन रहा, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 220.2 टन था।
उन्होंने कहा कि ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि 2 लाख रुपये से अधिक की खरीद पर स्थायी खाता संख्या (पैन) का ब्योरा अनिवार्य किए जाने का भी खरीदारी पर असर पड़ा है। इस साल की शुरुआत से सोने की कीमतें करीब 17 फीसदी बढ़ चुकी हैं। इस वजह से ग्राहकों ने कीमतों में बढ़ोतरी को अस्थायी मानते हुए अपनी खरीदारी टाली है, जिससे मांग कम हुई है। गौरतलब है कि फरवरी में सोने की कीमतों में अचानक तेजी आई थी, इसलिए खरीदारों ने कीमतों में स्थिरता आने का इंतजार किया। इसके बाद सराफों की 42 से अधिक दिन की हड़ताल चली, इसलिए भारत ने चालू कैलेंडर वर्ष के पहले दो महीने गंवा दिए। सोमसुंदरम ने कहा, 'अब भी सोने की कीमतों में तेजी लाने वाले कारक अत्यधिक सकारात्मक हैं।
आमतौर पर साल की दूसरी छमाही में सोने की मांग अच्छी होती है। वहीं, मॉनसून की बारिश के सकारात्मक पूर्वानुमान, सावधि जमा और सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) सहित वित्तीय योजनाओं में कम ब्याज दर और शेयर बाजारों में भारी उतार-चढ़ाव जैसे कारक सोने की खरीदारी के लिए अत्यधिक सकारात्मक हैं।' इस बीच निवेश मांग में अच्छी वृद्धि की बदौलत चालू कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में सोने की वैश्विक मांग 21 फीसदी बढ़ी है। चालू कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में वैश्विक मांग 1,289.8 टन रही। इसमें कुल निवेश मांग 122 फीसदी बढ़कर 617.6 टन रही। इसमें एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) में निवेशकों के बढ़ते विश्वास का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। आलोच्य अवधि में ईटीएफ में मांग करीब 300 फीसदी बढ़कर 363.7 टन रही, जो पिछले साल की इसी अवधि में महज 25.6 टन थी।
सोमसुंदरम ने कहा कि इस समय भारत के केंद्रीय बैंक के पास अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा 6 फीसदी है, जबकि चीन में यह महज 2 फीसदी है। उन्होंने कहा, 'रूस और चीन के केंद्रीय बैंकों ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा बढ़ाया है। इस तरह भारतीय रिजर्व बैंक का अपने भंडार में सोना बढ़ाने का फैसला रणनीतिक हो सकता है। आमतौर पर केंद्रीय बैंक डॉलर पर निर्भरता घटाने के लिए भंडार में सोना बढ़ाते हैं।' स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के बारे में सोमसुंदरम ने कहा कि बैंकों को सोना खरीदने की स्वीकृति दी जानी चाहिए।
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