नई दिल्ली (सं.सू.)। आतंकी संगठन आइएस की ओर इराक और सीरिया में लड़ने गए छह भारतीय मारे जा चुके हैं, जिनमें आजमगढ़ का मोहम्मद साजिद उर्फ बड़ा साजिद भी शामिल है। विदेशी खुफिया एजेंसियों की ओर भारतीय एजेंसियों को मिली जानकारी के मुताबिक आइएस में भारतीय समेत सभी दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी लड़ाकों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है और अरब लड़ाके धोखे से उन्हें मानव बम के रूप में इस्तेमाल करते हैं। यही कारण है कि सीरिया व इराक में लड़ रहे कुल 23 भारतीय में से छह यानी एक चौथाई से अधिक मारे जा चुके हैं।
आइएस की ओर से लड़ते हुए मारे गए छह भारतीय मुस्लिम युवकों में तीन कर्नाटक, एक तेलंगाना, एक मुंबई और एक उत्तर प्रदेश का है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ का रहने वाला मोहम्मद साजिद उर्फ बड़ा साजिद इंडियन मुजाहिदीन का आतंकी था और पाकिस्तान भाग गया था। आइएस के उदय के बाद वह पाकिस्तान से ही सीरिया चला गया था। इसी तरह बेंगलुरु का फैयाज मसूद और मोहम्मद उमर सुभान तथा भटकल का मौलाना अब्दुल कादिर सुल्तान अमरार भी इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी थे और पाकिस्तान से सीरिया गए थे। जबकि मुंबई के थाने का सहीम फारूक टंकी उन चार लड़कों में शामिल था, जो भारत से लड़ाई के लिए सीरिया गए थे। इनमें से एक वापस लौट चुका है। वहीं तेलंगाना का वसीम मोहम्मद सिंगापुर से सीरिया लड़ने के लिए गया था।
भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नाइजीरिया और सूडान से इस्लामी साम्राज्य के जुनून में लड़ने पहुंचे लड़ाकों को बाद में पछताना पड़ता है। वहां पहुंचते ही उनका पासपोर्ट जला दिया जाता है, ताकि वे वापस नहीं लौट सकें। उन्हें छोटे-छोटे बैरकों में रखा जाता है और अरब लड़ाकों की तुलना में कम वेतन और खराब हथियार लड़ने को दिए जाते हैं। यही नहीं, भारतीय, पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और चीनी लड़ाकों को विस्फोटक से लदी गाड़ी पर मिशन पर भेज दिया जाता है और उन्हें एक स्थान पर पहुंचकर एक नंबर पर फोन करने के लिए कहा जाता है। जैसे ही उस नंबर पर फोन करता है, गाड़ी में विस्फोट हो जाता है। जबकि उस लड़ाकों को यह पता भी नहीं होता है कि वह आत्मघाती मिशन पर भेजा जा रहा है। आइएस के प्रभुत्व वाले इलाकों में पुलिस में सिर्फ अरब मूल के लोग ही रखे जाते हैं। पुलिस में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोगों की भर्ती पर पूरी तरह प्रतिबंधित है।
रिपोर्ट के मुताबिक आइएस के अरब लड़ाके दक्षिण एशियाई देशों के मुसलमानों को दोयम दर्जे का मानते हैं, क्योंकि वे कुरान और हदीस के मूल पाठ से भटके हुए हैं। सीरिया पहुंचने पर उनको नए सिरे से इस्लाम के कथित मूल सिद्धांतों के बारे में बताया जाता है। कहीं भारतीय, पाकिस्तान, बांग्लादेशी युवक वापस भाग न जाएं, इसके लिए उन्हें जिन्न का डर भी दिखाया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि उनके पीछे जिन्न लगा दिया गया है और यदि वे भाग भी जाते हैं कि पूरी जिन्दगी यह जिन्न उन्हें परेशान करता रहेगा।
आइएस की ओर से लड़ते हुए मारे गए छह भारतीय मुस्लिम युवकों में तीन कर्नाटक, एक तेलंगाना, एक मुंबई और एक उत्तर प्रदेश का है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ का रहने वाला मोहम्मद साजिद उर्फ बड़ा साजिद इंडियन मुजाहिदीन का आतंकी था और पाकिस्तान भाग गया था। आइएस के उदय के बाद वह पाकिस्तान से ही सीरिया चला गया था। इसी तरह बेंगलुरु का फैयाज मसूद और मोहम्मद उमर सुभान तथा भटकल का मौलाना अब्दुल कादिर सुल्तान अमरार भी इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी थे और पाकिस्तान से सीरिया गए थे। जबकि मुंबई के थाने का सहीम फारूक टंकी उन चार लड़कों में शामिल था, जो भारत से लड़ाई के लिए सीरिया गए थे। इनमें से एक वापस लौट चुका है। वहीं तेलंगाना का वसीम मोहम्मद सिंगापुर से सीरिया लड़ने के लिए गया था।
भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नाइजीरिया और सूडान से इस्लामी साम्राज्य के जुनून में लड़ने पहुंचे लड़ाकों को बाद में पछताना पड़ता है। वहां पहुंचते ही उनका पासपोर्ट जला दिया जाता है, ताकि वे वापस नहीं लौट सकें। उन्हें छोटे-छोटे बैरकों में रखा जाता है और अरब लड़ाकों की तुलना में कम वेतन और खराब हथियार लड़ने को दिए जाते हैं। यही नहीं, भारतीय, पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और चीनी लड़ाकों को विस्फोटक से लदी गाड़ी पर मिशन पर भेज दिया जाता है और उन्हें एक स्थान पर पहुंचकर एक नंबर पर फोन करने के लिए कहा जाता है। जैसे ही उस नंबर पर फोन करता है, गाड़ी में विस्फोट हो जाता है। जबकि उस लड़ाकों को यह पता भी नहीं होता है कि वह आत्मघाती मिशन पर भेजा जा रहा है। आइएस के प्रभुत्व वाले इलाकों में पुलिस में सिर्फ अरब मूल के लोग ही रखे जाते हैं। पुलिस में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोगों की भर्ती पर पूरी तरह प्रतिबंधित है।
रिपोर्ट के मुताबिक आइएस के अरब लड़ाके दक्षिण एशियाई देशों के मुसलमानों को दोयम दर्जे का मानते हैं, क्योंकि वे कुरान और हदीस के मूल पाठ से भटके हुए हैं। सीरिया पहुंचने पर उनको नए सिरे से इस्लाम के कथित मूल सिद्धांतों के बारे में बताया जाता है। कहीं भारतीय, पाकिस्तान, बांग्लादेशी युवक वापस भाग न जाएं, इसके लिए उन्हें जिन्न का डर भी दिखाया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि उनके पीछे जिन्न लगा दिया गया है और यदि वे भाग भी जाते हैं कि पूरी जिन्दगी यह जिन्न उन्हें परेशान करता रहेगा।
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