Wednesday, November 25, 2015

जिसने जख्मी दारोगा को दी पनाह,पुलिस ने उसे ही बना दिया गुनहगार

लालगंज (सं.सू.)। सच कहते हैं कि पुलिस किसी की भी नहीं होती। जिसने जख्मी दारोगा जिनकी बाद में अस्पताल में मौत हो गई को पनाह दी पुलिस ने उसको ही गुनहगार बना दिया। लालगंज के सिंघिया मुहल्ले के 55 वर्षीय गरीब दुकानदार विजय साह की समझ में ही नहीं आ रहा कि उन्होंने ऐसा करके कौन-सा अपराध कर दिया। उसकी बदकिस्मती यह है कि 17 नवंबर को हुई गोलीबारी, पुलिस तथा भीड़ के बीच हिंसक झड़प के घटनास्थल के समीप गंडक तटबंध से सटे उसकी छोटी-सी चाय की दुकान है। जिसे चलाकर वह अपने दो बेटों तथा अन्य परिजनों का पेट पालता है और उसकी गलती यह कि उसने भीड़ के गुस्से से घबराये पुलिस अधिकारी को अपने यहां घर में बंद कर शरण दी थी। जिसका खामियाजा उसे यह भुगतना पड़ा कि न सिर्फ भीड़ ने उसकी एवं परिजनों की धुनाई की बल्कि पुलिस ने भी उसी अधिकारी के हत्याकांड में उसे नामजद आरोपी बना दिया। वह समझ नहीं पा रहा है कि अब क्या करे? पुलिस का यह दोहरा रवैया उसे पछताने पर मजबूर कर रहा है कि उसने परोपकार क्यों किया? दूसरी ओर घटनास्थल और उसकी अगल-बगल की पूरी आबादी में घूमने पर हर दस कदम पर रैफ के जवान तो दिख रहे हैं मगर दुकानों में सन्नाटा है लोग नहीं दिखते। दिखते भी हैं तो बात नहीं करना चाहते। सुगबुगाहट के अंदाज में आपस में बतियाते हैं।

इधर पुलिस गोली कांड में घायल मासूम बारह वर्षीय विकास जिसका इलाज पीएमसीएच में चल रहा है उसके पिता दीपा महतो ने पूछा कि उनके बारह वर्षीय बच्चे का क्या कसूर था? क्या वह दंगाई था? विकास आज भी जीवन और मौत से जूझ रहा है। उसके परिजन भी पुलिस पर मुकदमा करने के मूड में दिख रहे हैं। मृतक राकेश के बड़े भाई और पिता विजेन्द्र सिंह से भेंट करने पर वे बेहद गुस्से में दिखे और उनलोगों का सीधा-सीधा आरोप है कि उनका बेटा दुकान के लिए बाजार से सामान लाने गया था। भीड़ से कुछ लेना-देना नहीं था और पुलिस की गोलियां खाने के बाद भी डेढ़ घंटे तक थाना में और पुलिस की बोलेरो गाड़ी में छटपटाता रहा। अगर समय पर इलाज कराया गया होता तो शायद उस नौजवान की जान ऐसे नहीं जाती।

इधर भारतीय नौजवान सभा के प्रदेश अध्यक्ष और इस कांड में नामजद मुख्य आरोपी चर्चित नेता राकेश पासवान ने एक गुप्त जगह पर भेंट कर मीडियाकर्मियों को बताया कि इस घटना से उनका दूर-दूर तक कुछ लेना-देना नहीं है। वह उस दिन बीमार पड़ा था अब पुलिस उसकी जान के पीछे पड़ी है। उसके हजारों समर्थक और संगठन के सदस्य इस पुलिस के रवैये के विरोध में सक्रिय हो जायेंगे। पासवान और सारे स्थानीय लोगों का एक स्वर से कहना था कि पुलिस अगर तत्परता बरतती और घायलों को इलाज के लिए ले जाती तो मृतक दारोगा और नौजवान दोनों की बेशकीमती जान बच सकती थी।

विजय साह के मुताबिक उसने दारोगा को कंबल ओढ़ाकर मुंह ढककर अपने बिछावन पर यह कहकर सुलाये रखा कि वह उसका रिश्तेदार है। इधर छठ के दिन जान बूझकर की गयी सड़क दुर्घटना में घायल बुढ़िया को कई दिनों तक छिपाने के बाद एकाएक सदर अस्पताल में दाखिल कराना भी अपने आप में रहस्यमय है। लोगों को डर सता रहा है कि एक-एक कर निर्दोष कहीं न फंसे और फिर से प्रतिक्रिया न हो। लोग पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गड़बड़ी की भी आशंका जता रहे हैं। राकेश का पोस्टमार्टम रिपोर्ट चार दिनों बाद भी उसके घर वालों को नहीं दी गयी है। वैसे ऊपर से सब कुछ स्वभाविक दिखता है मगर घटनास्थल पर जाने पर या अगल-बगल के गांव में जाने पर यही लगा कि प्रशासन अगर धैर्य से काम ले और बदले की भावना से काम न करे तो हालात जल्दी ही सामान्य हो जायेंगे अन्यथा एक बार फिर से स्थिति बेकाबू भी हो सकती है।

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