नई दिल्ली (सं.सू.)। इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में गुुरुवार को बड़ी कामयाबी हासिल की। ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस जैसी क्षमता हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए इसरो ने गुरुवार को श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-सी 33 से आईआरएनएसएस-1जी को लॉन्च किया गया। गुरुवार को सातवां और आखिरी उपग्रह छोड़ा गया। इसके साथ ही भारत ने स्वदेशी जीपीएस बनाने की मंजिल तय कर ली है। साथ ही भारत,अमरीका और रूस की कतार में शामिल हो गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद दिल्ली से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस मिशन पर नजर बनान हुए थे। प्रधानमंत्री ने भारतीय वैज्ञानिकों को आईआरएनएसएस-1जी की लॉन्चिंग पर बधाई दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि अब हमारे रास्ते हम तय करेंगे। कैसे जाना है,कैसे पहुंचना है,ये हमारी अपनी तकनीक के माध्यम से होगा।
श्री मोदी ने कहा कि मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया के सपने को भारतीय वैज्ञानिकों ने साकार कर दिखाया है, मैं उनका बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं। नाविक का इस्तेमाल ट्रेन में सफर करते समय, कार से सफर करते समय बड़ी आसानी से किया जा सकेगा। नाविक हमें रास्ता दिखायेगा, नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम जोकि नेविगेशन विद इंडियन कॉस्टिलेशन (NAVIC) के नाम से यह जाना जाएगा। अगर सार्क देश चाहे तो वो भी भारत की इस जीपीएस की सेवा ले सकते हैं। इसकी क्षमता इतनी है कि यह भारत के अलावा 1500 स्क्वायर किलोमीटर की दूरी में भी यह अपनी सेवा दे सकता है।
भारतीय वैज्ञानिक बीते 17 साल से इसके लिए संघर्ष कर रहे थे। इस सैटेलाइट की मदद से न सिर्फ भारत के दूर दराज के इलाकों की सही लोकेशन पता चल जाएगी बल्कि यातायात भी काफी आसान हो जाएगा। खासतौर पर लंबी दूरी तय करने वाले समुद्री जहाजों को इससे काफी फायदा होगा। भारत का इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम अमरीका के जीपीएस और रूस के ग्लोनास को टक्कर देने वाला है। इस तरह की प्रणाली को यूरोपीय संघ और चीन भी साल 2020 तक ही विकसित कर पाएंगे। गौरतलब है कि 1999 में करगिल जंग के दौरान भारत ने पाकिस्तानी सेना की लोकेशन पता करने के लिए अमरीका से जीपीएस सेवा की मांग की थी लेकिन अमरीका ने तब भारत को आंकड़े देने से मना कर दिया था। उसी समय से भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्वदेशी जीपीएस सिस्टम बनान की कोशिश करने में लग गए थे। जीपीएस प्रणाली को पूरी तरह से भारतीय तकनीक से विकसित करन के लिए वैज्ञानिकों ने सात सैटेलाइट को एक नक्षत्र की तरह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने का फैसला किया। स्वदेशी जीपीएस सिस्टम के लिए भारतीय वैज्ञानिकों न पहला सैटेलाइट जुलाी 2013 में छोड़ा था।
Congratulations to ISRO team on successful launch of PSLV-C33 carrying IRNSS-1G
— President of India (@RashtrapatiBhvn) April 28, 2016
करीब 20 मिनट की उड़ान में पीएसएलवी-सी 33 ने 14,25 किलोग्राम वजनी आईआरएनएसएस-1 जी उपग्रह 497।8 किलोमीटर की ऊंचाई पर कक्षा में स्थापित किया। पीएसएलवी ठोस और तरल ईंधन द्वारा संचालित चार चरणों वाला प्रक्षेपण यान है। यह सैटेलाइट आईआरएनएसएस-1जी(भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली-1जी)के सात उपग्रहों के समूह का हिस्सा है। आईएरएनएसएस-1जी सैटेलाइट उपयोगकर्ताओं के लिए 1,500 किलोमीटर तक के विस्तार में देश और इस क्षेत्र की स्थिति की सटीक जानकारी देगा। अब तक भारत की ओर से 6 क्षेत्रीय नौवहन उपग्रहों(आईआरएनएसएस-1 ए,1बी,1सी,आईडी,1 ए,1जी) का प्रक्षेपण किया जा चुका है। बताया जा रहा है कि हर सैटेलाइट की कीमत करीब 150 करोड़ रुपए के करीब है। वहीं पीएसएलवी-एक्सएल प्रक्षेपण यान की लागत 130 करोड़ रुपए है। इस तरह सातों प्रक्षेपण यानों की कुल लागत 910 करोड़ रुपए बताई जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद दिल्ली से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस मिशन पर नजर बनान हुए थे। प्रधानमंत्री ने भारतीय वैज्ञानिकों को आईआरएनएसएस-1जी की लॉन्चिंग पर बधाई दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि अब हमारे रास्ते हम तय करेंगे। कैसे जाना है,कैसे पहुंचना है,ये हमारी अपनी तकनीक के माध्यम से होगा।
श्री मोदी ने कहा कि मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया के सपने को भारतीय वैज्ञानिकों ने साकार कर दिखाया है, मैं उनका बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं। नाविक का इस्तेमाल ट्रेन में सफर करते समय, कार से सफर करते समय बड़ी आसानी से किया जा सकेगा। नाविक हमें रास्ता दिखायेगा, नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम जोकि नेविगेशन विद इंडियन कॉस्टिलेशन (NAVIC) के नाम से यह जाना जाएगा। अगर सार्क देश चाहे तो वो भी भारत की इस जीपीएस की सेवा ले सकते हैं। इसकी क्षमता इतनी है कि यह भारत के अलावा 1500 स्क्वायर किलोमीटर की दूरी में भी यह अपनी सेवा दे सकता है।
भारतीय वैज्ञानिक बीते 17 साल से इसके लिए संघर्ष कर रहे थे। इस सैटेलाइट की मदद से न सिर्फ भारत के दूर दराज के इलाकों की सही लोकेशन पता चल जाएगी बल्कि यातायात भी काफी आसान हो जाएगा। खासतौर पर लंबी दूरी तय करने वाले समुद्री जहाजों को इससे काफी फायदा होगा। भारत का इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम अमरीका के जीपीएस और रूस के ग्लोनास को टक्कर देने वाला है। इस तरह की प्रणाली को यूरोपीय संघ और चीन भी साल 2020 तक ही विकसित कर पाएंगे। गौरतलब है कि 1999 में करगिल जंग के दौरान भारत ने पाकिस्तानी सेना की लोकेशन पता करने के लिए अमरीका से जीपीएस सेवा की मांग की थी लेकिन अमरीका ने तब भारत को आंकड़े देने से मना कर दिया था। उसी समय से भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्वदेशी जीपीएस सिस्टम बनान की कोशिश करने में लग गए थे। जीपीएस प्रणाली को पूरी तरह से भारतीय तकनीक से विकसित करन के लिए वैज्ञानिकों ने सात सैटेलाइट को एक नक्षत्र की तरह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने का फैसला किया। स्वदेशी जीपीएस सिस्टम के लिए भारतीय वैज्ञानिकों न पहला सैटेलाइट जुलाी 2013 में छोड़ा था।
Congratulations to ISRO team on successful launch of PSLV-C33 carrying IRNSS-1G
— President of India (@RashtrapatiBhvn) April 28, 2016
करीब 20 मिनट की उड़ान में पीएसएलवी-सी 33 ने 14,25 किलोग्राम वजनी आईआरएनएसएस-1 जी उपग्रह 497।8 किलोमीटर की ऊंचाई पर कक्षा में स्थापित किया। पीएसएलवी ठोस और तरल ईंधन द्वारा संचालित चार चरणों वाला प्रक्षेपण यान है। यह सैटेलाइट आईआरएनएसएस-1जी(भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली-1जी)के सात उपग्रहों के समूह का हिस्सा है। आईएरएनएसएस-1जी सैटेलाइट उपयोगकर्ताओं के लिए 1,500 किलोमीटर तक के विस्तार में देश और इस क्षेत्र की स्थिति की सटीक जानकारी देगा। अब तक भारत की ओर से 6 क्षेत्रीय नौवहन उपग्रहों(आईआरएनएसएस-1 ए,1बी,1सी,आईडी,1 ए,1जी) का प्रक्षेपण किया जा चुका है। बताया जा रहा है कि हर सैटेलाइट की कीमत करीब 150 करोड़ रुपए के करीब है। वहीं पीएसएलवी-एक्सएल प्रक्षेपण यान की लागत 130 करोड़ रुपए है। इस तरह सातों प्रक्षेपण यानों की कुल लागत 910 करोड़ रुपए बताई जा रही है।
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