Thursday, December 10, 2015

एनएमसीएच घोटाले में हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

पटना (सं.सू.)। नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रोगियों की जांच हेतु 2007 में ही 1.5 करोड़ रूपए की लागत से मल्टीस्लाईस स्पाईरल सीटी स्कैन मशीन खरीद घोटाले के सन्दर्भ में पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार से जवाब तलब किया है। अधिवक्ता दीनू कुमार के माध्यम से माननीय उच्च न्यायालय पटना में इस मामले की विस्तृत जाँच निगरानी से कराने हेतु तथा आरोपी डॉ. संतोष कुमार द्वारा आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले को आर्थिक अपराध शाखा के द्वारा जाँच करने हेतु नागरिक अधिकार मंच की तरफ से एक जनहित याचिका दायर की गई थी। गुरुवार को मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय पटना के मुख्य न्यायाधीश के बेंच में हुई जिसमें राज्य सरकार को अनियमितता के सभी तथ्यों के मौजूद होने के बावजूद आरोपी पर कार्रवाई नहीं करने के कारण फटकार लगाई गई तथा आगामी मंगलवार को स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर जवाब देने को कहा गया।

विदित हो कि नागरिक अधिकार मंच के अध्यक्ष शिव प्रकाश राय द्वारा जाँच एवं आवश्यक कार्रवाई हेतु द्वारा लगातार तथ्यात्मक आवेदन संबंधित अधिकारियों को समर्पित की गई। पर प्रदेश में ऊँची राजनीतिक पहुँच रखनेवाले कॉलेज के तत्कालीन उपाधीक्षक और घोटालों के आरोपी होने के बावजूद अब इसी कॉलेज में अधीक्षक बन चुके डॉ. संतोष कुमार को बचाने के उद्देश्य से मामले को बिहार सरकार द्वारा दबाया जाता रहा है। पूर्व में कई-कई बार प्रिंट और दृश्य मीडिया में उछाले जाने के बावजूद इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, प्रधान सचिव (स्वास्थ्य विभाग), प्रधान सचिव (निगरानी विभाग), पुलिस महानिरीक्षक तथा पुलिस अधीक्षक (आर्थिक अपराध शाखा), बिहार सरकार को तथ्यों के साथ लिखित रूप में, मेल से तथा जन शिकायत निवारण हेतु उपलब्ध ऑनलाईन पोर्टल पर भी विस्तृत जानकारी दी गई। पर इनका उद्देश्य स्पष्ट रूप से इस मामले के आरोपी को बचाना तथा उन्हें लाभ पहुँचाना था, अतः इन्होंने मामले को ठंढे बस्ते में डाले रखा। इसी कॉलेज में 2008 तथा 2009 में हुई वित्तीय अनियमितताओं पर निगरानी की जाँच चल रही है और मीडिया की ख़बरों के अनुसार चौदह लोगों पर प्राथमिकी भी दर्ज हुई है, पर डॉ. संतोष कुमार की ऊँची पहुँच की वजह से उन्हें जान-बूझकर राहत ही नहीं दी जा रही बल्कि लाभ पहुँचाया जा रहा है। उनपर स्पष्ट आरोप के बावजूद उन्हें इस संस्थान के उपाधीक्षक से अधीक्षक बना दिया गया।

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