पटना (सं.सू.)। बिहार की राजधानी पटना से सटा दानापुर का जमसौत गांव। यह वही गांव है जिसको माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने 5 साल पहले गोद लिया था। मगर हाय री किस्मत! दुनिया का सबसे अमीर आदमी भी इस गांव की तकदीर नहीं बदल सका। गांव की जिस बच्ची को गोद में लेकर माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स और उनकी अपनी पत्नी ने फोटो खिंचवाई थी, उसकी हालत भी नहीं बदली है। बच्ची रानी की मां रुंती देवी कहती हैं, “गांव में सब हंसी उड़ाते हैं। कहते हैं बड़का आदमी आया फिर भी ठन ठन गोपाल रह गईं। बरसात में इंदिरा आवास से पानी चूता है। चिमकी (पन्नी) डालकर, बच्चों को कोने में खड़ा करके रात गुजारते हैं।” पटना से सटे दानापुर के जमसौत मुसहरी की 35 साल की रुंती देवी बिल गेट्स की उसी यात्रा के दौरान सुर्खियों में आई थीं।
वह बताती हैं उस दिन वे खेत पर मजदूरी करने गई थीं, अचानक उन्हें घर बुलाया गया। घर पर देखा कि एक गोरी मेम और साहेब उसकी कुछ महीनों की बेटी रानी को गोद में लिए बैठे हैं। रुंती बताती हैं, “वो लोग अंग्रेजी में बोलते थे और एक हिंदी बोलने वाले हम लोगों को हिंदी में बताते थे। रानी के साथ उन्होंने फोटो खिंचवाई, बात की और चले गए।” आगे वह बताती है कि "साहेब(बिल गेट्स) के गेला के बाद कुच्छो न होलई हे। दीदी जी (पद्मश्री सुधा वर्गीज) एगो सेंटर चलाव हलथिन, जेकरा में औरत लोग के महीना के कपड़ा (नैपकिन पैड) बन हलई। हमहूं ओकरे में काम कर हलियई। लेकिन अब ओहू बंद हो गेलई। अब तो कोई झांकियो पाड़े न आव हथिन।"
बिल गेट्स फांउडेशन और बिहार सरकार के बीच 2010 में स्वास्थ्य सुधार को लेकर एक समझौता हुआ था। इसी के सिलसिले में बिल गेट्स और उनकी पत्नी मिलिंडा गेट्स 2011 में जमसौत आए थे।
समझौते के तहत स्वास्थ्य के विभिन्न मापदंडों मसलन मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर, कुपोषण, आंगनबाड़ी, आशा कार्यकर्ताओं आदि के बीच काम होना था। गांव वाले कहते हैं कि जब रानी को बिल गेट्स ने अपनी गोद में लिया था तो बड़ी उम्मीद जगी थी। लेकिन उस उम्मीद को नाउम्मीदी में बदलते ज़्यादा देर नहीं लगी। रानी अब 5 साल की हो गई हैं। वह बगल के आंगनबाड़ी केंद्र में कभी कभार जाती हैं। उनके बड़े भाई का नाम नीतीश कुमार हैं। वह ज़्यादा देर खड़ा नहीं रह पाते। उनकी आंखें पीली पड़ रही हैं और डॉक्टर ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करने का सुझाव दिया है। रुंती अपनी मजबूरियां गिनाती हैं, “खाने को पैसा जुटता नहीं, हम इलाज कहां से कराएं।”
रानी के पिता साजन मांझी मजदूर हैं। उन्हें काम कभी कभार ही मिलता है। इसलिए घर परिवार चलाना बहुत मुश्किल है। गांव का स्वास्थ्य उपकेंद्र बंद पड़ा है। यहां स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों का बुरा हाल है। वीरेंद्र ने यहां के स्वास्थ्य उपकेंद्र में इलाज़ करवाया था लेकिन उनका पांव टेढ़ा हो गया। वह बताते हैं, “यहां कोई दवा नहीं मिलती। एक महिला डॉक्टर हैं जो भी कभी-कभी आती हैं। मेरे पांव का मलहम यहां नहीं मिला। प्राइवेट इलाज कराया। एक बार सिरदर्द की दवा यहां से लेकर खाई तो बीमार हो गया।”सरकारी स्कूल की भी यही हालत है। दो कमरों में पांचवीं तक की पढ़ाई होती है। बच्चे इन्हीं कमरों में ठुंसे रहते हैं। गांव की फुलवंती देवी बताती हैं, “मास्टर सब अपना किस्सा कहने में लगे रहते हैं और बच्चा सब यहां वहां घूमता रहता है।” गांव का आंगनबाड़ी केंद्र छोटे से अंधेरे कमरे में चल रहा है, जहां गर्मी के मौसम में बच्चों को और मुश्किल हो जाती है।
वहीं एक नौजवान अमर मांझी ने बताया कि गांव के नौजवान दिहाड़ी मजदूर हैं। कोई मकान में मजदूरी करता है, तो कोई साफ़-सफ़ाई का काम। वह खुद पोल गाड़ने का काम करता है। बदले में प्रतिदिन के हिसाब से तीन सौ रुपये मिलते हैं। पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछने पर बताया कि उसने आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। गांव के अन्य लोगों की दास्तान भी ऐसी ही थी।
खास बात लोगों ने यह बताया कि दो वर्षों से शौचालय बनाने की सामग्री लाकर रखी हुई है, जिसे कोई पूछने वाला नहीं है।
वह बताती हैं उस दिन वे खेत पर मजदूरी करने गई थीं, अचानक उन्हें घर बुलाया गया। घर पर देखा कि एक गोरी मेम और साहेब उसकी कुछ महीनों की बेटी रानी को गोद में लिए बैठे हैं। रुंती बताती हैं, “वो लोग अंग्रेजी में बोलते थे और एक हिंदी बोलने वाले हम लोगों को हिंदी में बताते थे। रानी के साथ उन्होंने फोटो खिंचवाई, बात की और चले गए।” आगे वह बताती है कि "साहेब(बिल गेट्स) के गेला के बाद कुच्छो न होलई हे। दीदी जी (पद्मश्री सुधा वर्गीज) एगो सेंटर चलाव हलथिन, जेकरा में औरत लोग के महीना के कपड़ा (नैपकिन पैड) बन हलई। हमहूं ओकरे में काम कर हलियई। लेकिन अब ओहू बंद हो गेलई। अब तो कोई झांकियो पाड़े न आव हथिन।"
बिल गेट्स फांउडेशन और बिहार सरकार के बीच 2010 में स्वास्थ्य सुधार को लेकर एक समझौता हुआ था। इसी के सिलसिले में बिल गेट्स और उनकी पत्नी मिलिंडा गेट्स 2011 में जमसौत आए थे।
समझौते के तहत स्वास्थ्य के विभिन्न मापदंडों मसलन मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर, कुपोषण, आंगनबाड़ी, आशा कार्यकर्ताओं आदि के बीच काम होना था। गांव वाले कहते हैं कि जब रानी को बिल गेट्स ने अपनी गोद में लिया था तो बड़ी उम्मीद जगी थी। लेकिन उस उम्मीद को नाउम्मीदी में बदलते ज़्यादा देर नहीं लगी। रानी अब 5 साल की हो गई हैं। वह बगल के आंगनबाड़ी केंद्र में कभी कभार जाती हैं। उनके बड़े भाई का नाम नीतीश कुमार हैं। वह ज़्यादा देर खड़ा नहीं रह पाते। उनकी आंखें पीली पड़ रही हैं और डॉक्टर ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करने का सुझाव दिया है। रुंती अपनी मजबूरियां गिनाती हैं, “खाने को पैसा जुटता नहीं, हम इलाज कहां से कराएं।”
रानी के पिता साजन मांझी मजदूर हैं। उन्हें काम कभी कभार ही मिलता है। इसलिए घर परिवार चलाना बहुत मुश्किल है। गांव का स्वास्थ्य उपकेंद्र बंद पड़ा है। यहां स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों का बुरा हाल है। वीरेंद्र ने यहां के स्वास्थ्य उपकेंद्र में इलाज़ करवाया था लेकिन उनका पांव टेढ़ा हो गया। वह बताते हैं, “यहां कोई दवा नहीं मिलती। एक महिला डॉक्टर हैं जो भी कभी-कभी आती हैं। मेरे पांव का मलहम यहां नहीं मिला। प्राइवेट इलाज कराया। एक बार सिरदर्द की दवा यहां से लेकर खाई तो बीमार हो गया।”सरकारी स्कूल की भी यही हालत है। दो कमरों में पांचवीं तक की पढ़ाई होती है। बच्चे इन्हीं कमरों में ठुंसे रहते हैं। गांव की फुलवंती देवी बताती हैं, “मास्टर सब अपना किस्सा कहने में लगे रहते हैं और बच्चा सब यहां वहां घूमता रहता है।” गांव का आंगनबाड़ी केंद्र छोटे से अंधेरे कमरे में चल रहा है, जहां गर्मी के मौसम में बच्चों को और मुश्किल हो जाती है।
वहीं एक नौजवान अमर मांझी ने बताया कि गांव के नौजवान दिहाड़ी मजदूर हैं। कोई मकान में मजदूरी करता है, तो कोई साफ़-सफ़ाई का काम। वह खुद पोल गाड़ने का काम करता है। बदले में प्रतिदिन के हिसाब से तीन सौ रुपये मिलते हैं। पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछने पर बताया कि उसने आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। गांव के अन्य लोगों की दास्तान भी ऐसी ही थी।
खास बात लोगों ने यह बताया कि दो वर्षों से शौचालय बनाने की सामग्री लाकर रखी हुई है, जिसे कोई पूछने वाला नहीं है।
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